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जैन धर्म का मौलिक इतिहास
धर्म परिवार
आपका धर्म परिवार निम्न संख्या में था :
गरण एवं गणधर
केवली
मनः पर्यवज्ञानी
अवधि ज्ञानी चौदह पूर्वधारी वैक्रिय लब्धिधारी
वादी
साधु
साध्वी
श्रावक
श्राविका
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नौ हजार आठ सौ ( 8,500 )
एक हजार पांच सौ (१,५०० )
उन्नीस हजार (१६,००० )
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• ग्यारह हजार (११,००० )
- तीन लाख (३,००,००० )
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एक सो सोलह ( ११६ )
चौदह हजार (१४,००० )
ग्यारह हजार छः सौ (११,६०० )
-
छः लाख तीस हजार ( ६,३०,००० )
दो लाख अठ्यासी हजार ( २,८८,००० ) पांच लाख सत्ताईस हजार (५,२७,००० )
परिनिर्वाण
पचास लाख पूर्व वर्षों की पूर्ण प्रायु में आपने साढ़े बारह लाख पूर्व तक कुमार अवस्था, आठ पूर्वांग सहित साढ़े छत्तीस लाख पूर्व तक राज्यपद और आठ पूर्वांग कम एक लाख पूर्व तक दीक्षा पर्याय का पालन किया ।
फिर अन्त में जीवन काल की समाप्ति निकट समझ कर वैशाख शुक्ला अष्टमी को ' पुष्य नक्षत्र के योग में आपने एक मास के अनशन से एक हजार मुनियों के साथ सकल कर्म क्षय कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होकर निर्वारण-पद प्राप्त किया | आपके परम पावन उपदेशों से असंख्य ग्रात्माओं ने अपना कल्याणसाधन किया ।
१ वैशाखस्य सिताष्टम्यां पुष्यस्थे रजनीकरे ।
मम मुनिमहापुनरागत्यगात् पदम् । त्रिषष्टि श०पु०च०, पर्व ३, सर्ग ३, श्लो. १७२ (क) सत्तरिसयद्वार, द्वा. १४७, गा. ३०६ मे ३१०
(ख) प्रवचनसारोद्धार, हरिवंश और तिलोय पन्नत्ति में वैशाख शु. ७ निर्वाण तिथि का
उल्लेख है ।
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