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________________ चक्रवर्ती सगर १६७ राज्य सिंहासन पर आसीन किया और उन्होंने तीर्थंकर भगवान् अजितनाथ' के चरणों में श्रमण धर्म अंगीकार कर लिया। विशुद्ध संयम का पालन करते. हुए सगर मुनि ने अनेक प्रकार की उग्र तपश्चर्याएं की। तप और संयम की अग्नि में चार घाति कर्मों को मूलतः ध्वस्त कर उन्होंने केवलज्ञान प्राप्त किया और अन्त में अघाति कर्मों को नष्ट कर अक्षय अव्याबाध शाश्वत सुखधाम निर्वाण प्राप्त किया। 00 १ (अ) त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र में भ० अजितनाथ के पास सगर चक्रवर्ती के दीक्षित होने का उल्लेख है। __ -त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र, पर्व २, सर्ग ६, पृ० २५०-२५१, श्लोक सं. ६१६ से ६५१-- (ब) चउवनमहापुरिसचरियं में सुस्थित नामक प्राचार्य के पास सगर चक्रवर्ती के दीक्षित होने का उल्लेख है । यथाः"अप्पणा य मुरिणऊण संसारा सारतणं................."सुट्टियायरियसयासे कुमार सहगयमहासामंतेहिं सद्धि गहिया पीस्सेसकम्मरिणअरणभूया............. पवजा --चउवन म० पु० चरियं, पृ० ७१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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