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________________ चक्रवर्ती सगर प्रवर्तमान अवसर्पिणी काल में जम्बूद्वीपस्थ भरतक्षेत्र के प्रथम चक्रवर्ती भरत के पश्चात् द्वितीय चक्रवर्ती सगर हुए। ___ भगवान् अजितनाथ द्वारा तीर्थप्रवर्तन के कतिपय वर्षों पश्चात् महाराज सगर की प्रायुधशाला में चक्ररत्न उत्पन्न हुआ। इस हर्षप्रद प्रसंग के उपलक्ष्य में महाराज सगर के आदेश से सम्पूर्ण राज्य में आठ दिन तक बड़े हर्षोल्लास के साथ महोत्सव मनाया गया। चक्ररत्न को मिलाकर चक्रवर्ती सगर के यहां कुल चौदह रत्न उत्पन्न हुए, उनके नाम इस प्रकार हैं : (१) चक्ररत्न, (२) छत्ररत्न, (३) चर्मरत्न, (४) मणिरत्न, (५) काकिणी रत्न, (६) खड्गरत्न और (७) दण्डरत्न -ये सात रत्न तो एकेन्द्रिय थे । शेष (८) अश्वरत्न, (६) हस्तिरत्न, (१०) सेनापतिरत्न, (११) गाथापतिरत्न, (१२) पुरोहितरत्न, (१३) बढईरत्न और (१४) स्त्रीरत्न-ये सात रत्न पंचेन्द्रिय थे। सगर चक्रवर्ती ने भी भरत चक्रवर्ती के समान बत्तीस हजार वर्ष तक भरतक्षेत्र के ६ खण्डों की दिग्विजय कर सम्पूर्ण भरतक्षेत्र पर अपना एकच्छत्र शासन स्थापित किया । सगर के यहां निधियां उत्पन्न हुई। उन ६ निधियों के नाम इस प्रकार हैं : (१) नैसर्प महानिधि, (२) पाण्डुक महानिधि, (३) पिंगल महानिधि, (४) सर्वरत्न महानिधि, (५) महापद्म महानिधि, (६) काल महा निधि, (७) महाकाल निधि, (८) मारणवक महानिधि और (६) शंख महानिधि । चक्रवर्ती सगर की सेवा में, ३२ हजार मुकुटधर महाराजा, सदा उनकी प्राज्ञा का पालन करने के लिये तत्पर रहते थे। चक्रवर्ती सगर के अन्तःपुर में स्त्रीरत्न प्रमुख ६४ हजार रानियां थीं। महाराजाधिराज चक्रवर्ती सगर के सहस्रांशु, सहस्राक्ष, जह, सहस्रबाहु आदि ६० हजार पुत्र हुए। सुदीर्घकाल तक चक्रवर्ती षट्खण्ड के राज्य का सुखोपभोग करते रहे। प्राचार्य शीलांक के चौवन महापुरिस चरियम् और प्राचार्य हेमचन्द्र द्वारा रचित त्रिषष्टि शलाका पुरुप चरित्र में ऐसा उल्लेख है - "सहस्रांशु आदि सगर के ६० हजार पुत्र चक्रवर्ती सगर की आज्ञा प्राप्त कर सेनापतिरत्न, दण्डरत्न आदि रत्नों और एक बड़ी सेना के साथ भरतक्षेत्र के भ्रमरण के लिये प्रस्थित हा। अनेक स्थानों में भ्रमण करते हए जब वे अष्टापद पर्वत के पास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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