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जैन धर्म का मौलिक इतिहास
[धर्म परिवार
जाने के वृत्तान्त को अवधिज्ञान के उपयोग द्वारा जान कर वह व्यन्तर जाति की देवी, उस वेदिका के निकट मा उपस्थित हुई और उसने सम्यक्त्वधारी ब्राह्मण-दम्पति के बालक की रक्षा कर सम्यक्त्व के प्रभाव को प्रकट किया।
शुद्धभट्ट अपने पुत्र को लिये घर लौटा । उसने अपनी पत्नी सुलक्षणा को सब वृत्तान्त सुनाया । उक्त वृत्तान्त सुन कर सुलक्षणा ने अपने पति से कहा"आपने यह अच्छा नहीं किया । क्योंकि यदि उस समय देवता का सान्निध्य नहीं होता और हमारा पुत्र जल जाता तो क्या सम्यक्त्व, जिनेन्द्र द्वारा प्ररूपित धर्म त्रिलोकपूज्य सर्वज्ञ-सर्वदर्शी अर्हत् प्रभु का अस्तित्व निरस्त हो जाता इनका अस्तित्व तो त्रिकालसिद्ध है।"
इस प्रकार कह कर यह ब्राह्मणी सुलक्षगगा उस गांव के उन नव लोगा को और अपने पति को सम्यक्त्व में स्थिर करने के लिए अपने साथ ले कर यहां पाई है।
इस ब्राह्मण ने यहां मा कर मुझ से उसी सम्बन्ध में पूछा और मैंने भी उसे सम्यक्त्व का प्रभाव बताया।
- भगवान् अजितनाथ के मुखारविन्द से यह सुन कर ब्राह्मण दम्पति के साथ माये हुए शालिग्राम के निवासियों ने दृढ़ मास्था प्राप्त की। समवसरण में उपस्थित अन्य अनेक भव्यों ने भी सम्यक्त्व ग्रहण किया। शुद्धभट्ट और सुलक्षणा ने उसी समय प्रभु से श्रमणधर्म की दीक्षा ग्रहण की और अनेक वर्षों तक विशुद्ध श्रमणाचार का पालन करते हुए उन दोनों ने समस्त कर्मसमूह को ध्वस्त कर अन्त में मोक्ष प्राप्त किया।
धर्म परिवार. भ० प्रजितनाय का धर्म-परिवार इस प्रकार था :गरणधर'
पचानवे (९५) केवली.
बाईस हजार (२२,०००) मनःपर्यवज्ञानी बारह.हजार पांच सौ (१२,५००) प्रवषिशानी नव हजार चार सौ (९,४००) चौदह पूर्वषारी
तीन हजार सात सौ (३,७००) वैक्रियलधिधारी बीस हजार चार सौ (२०,४००)
बारह हजार चार सौ (९२४००) १ हरिवंश पुराण पोर तिलोयपत्ति में १० बसपर होने का इल्मेन है। २ विषष्टिनाका पुल परिष, पर्व २, सर्व , मो. ९७०
समवावांव सूत्र।
बादी
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