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जैन धर्म का मौलिक इतिहास [शालिग्राम निवासियों भगवान् की देशना के अनन्तर उस ब्राह्मण ने हाथ जोड़ कर पूछा"प्रभो! यह इस प्रकार क्यों है ?'
भगवान् अजितनाथ ने फरमाया-“हे देवानुप्रिय ! यह सम्यक्त्व का प्रभाव है।"
ब्राह्मण ने पूछा-"किस प्रकार प्रभो ?"
प्रभ ने ब्राह्मण के "किस प्रकार?" इस प्रश्न का उत्तर देते हुए फरमाया--"सौम्य ! सम्यक्त्व का प्रभाव बहुत बड़ा है । सम्यक्त्व के प्रभाव से वैर शान्त हो जाते हैं, व्याधियां नष्ट हो जाती हैं, अशुभ कर्म विलीन हो जाते हैं, अभीप्सित कार्य सिद्ध होते हैं, देवायु का बन्ध होता है, देव-देवीगरण सहायतार्थ सदा समुद्यत रहते हैं । ये सब तो सम्यक्त्व के साधारण फल हैं । सम्यक्त्व की उत्कृट उपासना से प्राणी समस्त कर्म-समूह को भस्म कर विश्ववंद्य तीर्थंकर पद तक प्राप्त कर शुद्ध, बुद्ध हो शाश्वत शिवपद प्राप्त करते हैं।
प्रभ के मुखारविन्द से यह सुन कर ब्राह्मण ने कहा- "भगवन यह ऐसा ही है, यथातथ्य है, अवितथ है । किंचिन्मात्र भी अन्यथा नहीं है।" यह कहकर ब्राह्मण अत्यन्त सन्तुष्ट मुद्रा में अपने स्थान पर बैठ गया।
शेष सब श्रोताओं को इस प्रश्नोत्तर के रहस्य से अवगत कराने हेतु परम उपकारी प्रभु के मुख्य गणधर ने पूछा-"प्रभो ! ब्राह्मरण के प्रश्न पोर आपके द्वारा दिये गये उत्तर का रहस्य क्या है ?"
भगवान् अजितनाथ ने फरमाया- “सौम्य ! सुनो, यहां से थोड़ी ही दूरी पर शालिग्राम नामक एक ग्राम है । उस ग्राम में दामोदर नामक एक ब्राह्मण रहता था। उसकी धर्मपत्नी का नाम सीमा था। उनके पुत्र का नाम शुद्धभट्ट था । सिद्धभट्ट नामक एक ब्राह्मण की सुलक्षणा नाम्नी कन्या के साथ शुद्धभट्ट का विवाह किया गया । नवदम्पति सांसारिक सुखों का उपभोग करने लगा। कालान्तर में उन दोनों के माता-पिता का देहावसान हो गया और उनका पूर्वसंचित धन-वैभव भी विनष्ट हो गया। स्थिति यहां तक बिगड़ी कि अति कष्टसाध्य घोर परिश्रम के उपरान्त भी उन्हें दोनों समय भोजन तक का मिलना भी दूभर हो गया। अपने घर की इस दारिद्र्यपूर्ण दयनीय दशा को देख कर शुद्धभट्ट बड़ा दुखित हुा । एक दिन वह अपनी पत्नी को बिना कहे ही चुपचाप घर से निकल कर परदेश चला गया । सुलक्षणा को अन्य लोगों से ही पति के परदेश गमन का वृत्तान्त ज्ञात हुआ।
पति के इस प्रकार चुपचाप उसे छोड़ कर चले जाने से सुलक्षणा के हृदय को बड़ा भारी आघात पहुंचा । वह शोक सागर में डूबी हुई सब से दूर
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