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[नामकरण]
भ० अजितनाथ
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समय से पूर्व ही वे शब्दशास्त्र, साहित्य, छन्दशास्त्र, न्याय आदि विद्याओं एवं बहत्तर कलानों में पारंगत हो गये । सगर कुमार इस अर्थ में महान् भाग्यशाली थे कि उन्हें विशिष्ट तीन ज्ञान के धारक अपने ज्येष्ठ भ्राता अजित कुमार का साहचर्य प्राप्त हुआ था । वस्तुतः यह उनके लिये परम लाभप्रद सुयोग था। सगर कुमार इस अद्भुत सुयोग से अत्यधिक लाभान्वित हुए । अध्ययन काल में मेधावी छात्र सगर कुमार के मन में समय-समय पर अनेक ऐसी जिज्ञासाएं उत्पन्न होती. जिनका समुचित समाधान करने में उनके शिक्षक असफल रहते । ज्यों ही सगर कुमार अपनी जिज्ञासाए जगद्गुरु अजित कुमार के सम्मुख रखते त्यों ही अजित कुमार उन जटिल से जटिलतर समस्याओं का ऐसे समीचीन रूप से समाधान करते कि सगर कुमार तत्काल उनका समुचित समाधान पाकर पूर्णतः सन्तुष्ट हो जाते । इस प्रकार सगरकुमार ने केवल अपने अध्ययन काल में ही नहीं अपितु लम्बे जीवनकाल में प्रभु अजितनाथ से वह तलस्पर्शी ज्ञान प्राप्त किया जो किसी अन्य शिक्षक एवं कलाचार्य से प्राप्त नहीं होता । सगर कुमार अपने ज्येष्ठ बन्धु अजितकुमार को पिता तुल्य और गुरु समझ कर उनके प्रति सदा अनन्य सम्मान, श्रद्धा और भक्ति प्रकट करते थे।
क्रमशः भ्रातृद्वय श्री अजितकुमार और सगरकुमार ने किशोर वय को पार कर युवावस्था में प्रवेश किया। तब दोनों कुमारों के पाणिग्रहण हेतु अनेक राजाओं के अपनी-अपनी राजकन्याओं के पाणिग्रहण के लिए प्रस्ताव आने लगे । वज्र ऋषभनाराच संहनन और समचतुरस्र संस्थान के धनी, तपाये हुए विशुद्ध स्वर्ण के समान मनोहारिणी कान्ति वाले उत्तमोत्तम लक्षणों से युक्त, व्यूढोरस्क, वृषस्कन्ध कुमारयुगल को यौवन के तेज से प्रदीप्त देख कर महाराज जितशत्रु और महारानी विजया ने दोनों राजकुमारों का उनके योग्य राजकुमारियों से विवाह करने का प्रस्ताव किया। भोगफल देने वाले भोगावली कर्मों को उदित हुए जान कर अजितकुमार को विवाह के लिये अपनी स्वीकृति येन-केन-प्रकारेण देनी पड़ी। दोनों कुमारों के लिये सभी दृष्टियों से सुयोग्य कन्याओं का बड़ी सावधानी से चयन करने के पश्चात् क्रमशः अजितकुमार और सगर कुमार का कुल, रूप, लावण्य एवं सर्वगुण सम्पन्ना अनेक राजकुमारियों के साथ विवाह किया गया । रोग से निवृत्त होने के लिये औषधि लेना आवश्यक है, उसी प्रकार उदय में आये हुए भोगावलि कर्मों से निवृत्ति पाने के लिये भोगों का उपभोग भी करना है, यह समझ कर श्री अजितकुमार भोगमार्ग में प्रवृत्त हुए।
जिस समय अजित कुमार की वय १८ लाख पूर्व की हुई, उस समय महाराज जितशत्रु ने संसार से विरक्त हो श्रमण धर्म ग्रहण करने का निश्चय किया। उन्होंने अजित कुमार को अपने संकल्प से अवगत कराते हुए राज्यभार सम्भालने का आग्रह किया । राजकुमार श्री अजित ने प्रव्रज्या ग्रहण के पिता
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