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रूप में लोकव्यापी कीति]
भगवान् ऋषभदेव
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मानव समाज द्वारा शिरोधार्य किया गया वह विराट् विश्व धर्म कोट्यानुकोटि शताब्दियों, पीढ़ी-प्रपीढ़ियों तक लोक में शाश्वत, धर्म, नित्य धर्म अथवा ध्र वधर्म के नाम से अभिहित किया जाता रहा और उसी के परिणामस्वरूप सार्वभौम लोकनायक, सार्वभौम धर्मनायक के रूप में भगवान ऋषभदेव की कीर्ति सम्पूर्ण लोक में व्याप्त रही। यही कारण है कि भारत के प्राचीन धर्मग्रन्थों में भगवान ऋषभदेव को धाता, भाग्य-विधाता और भगवान् आदि लोकोत्तम अलंकारों से अलंकृत किया गया है।
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