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________________ जैन धर्म का मौलिक इतिहास [भगवान् ऋषभदेव सर्वात्मनात्मन्यास्थाप्य. परमात्मानमीश्वरम् । नग्नो जटो निराहारोऽचीरी ध्वांतगतो हि सः ॥२२॥ निराशस्त्यक्तसंदेहः, शैवमाप परं पदम् । हिमाद्रेर्दक्षिणं वर्ष, भरताय न्यवेदयत् ।।२३।। तस्मात्तु भारतं वर्ष, तस्य नाम्ना विदुर्बुधाः । [लिंग पुराण, अध्याय ४७] न ते स्वस्ति युगावस्था, क्षेत्रेष्वष्टसु सर्वदा ॥२६॥ हिमाह्वयं तु वै वर्ष, नाभेरासीन्महात्मनः ।। तस्यर्षभोऽभवत्पुत्रो मरुदेव्यां महाद्युतिः ।।२७।। ऋपभाद् भरतो जज्ञे ज्येष्ठः पुत्रशतस्य सः ॥२८॥ [विष्णु पुराण, द्वितीयांश अध्याय १] नाभेः पुत्रश्च ऋषभः ऋपभाद् भरतोऽभवत् । तस्यनाम्नात्विदं वर्ष, भारतं चेति कीर्त्यते ।।५७।। [स्कन्ध पुराण, माहेश्वर खण्ड का कौमार खण्ड, अध्याय ३७] कुलादि बीजं सर्वेषां प्रथमो विमलवाहनः । चक्षुष्मान् यशस्वी वाभिचन्द्रोऽथ प्रसेनजित् । मरुदेवश्च नाभिश्च, भरते कुल सप्तमा: । अष्टमो मरुदेव्यां तु. नाभेर्जात उरक्रमः । दर्शयन् वम वीराणां सुरासुरनमस्कृतः । नीति त्रितयकर्ता यो, युगादो प्रथमो जिनः । [मनुस्मृतिः] भगवान् ऋषभदेव और ब्रह्मा लोक में ब्रह्मा नाम से प्रसिद्ध जो देव है, वह भगवान् वृषभदेव को छोड़कर दूसरा नहीं है । ब्रह्मा के अन्य अनेक नामों से निम्नलिखित नाम अत्यन्त प्रसिद्ध हैं : हिरण्यगर्भ, प्रजापति, लोकेश, नाभिज, चतुरानन, स्रष्टा, स्वयभू । इनकी यथार्थ संगति भगवान कृपभदेव के साथ बैठती है । जैसे :हिरण्य गर्भ-जब भगवान माता मरुदेवी के गर्भ में आए, उसके छः मास पहले __ अयोध्यानगरी में हिरण्य, सुवर्ण तथा रत्नों की वर्षा होने लगी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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