SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 200
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन धर्म का मौलिक इतिहास [भगवान् ऋषभदेव और भरत डॉ० जिम्भर लिखते हैं :"अाज प्रागैतिहासिक काल के महापुरुषों के अस्तित्व को सिद्ध करने के साधन उपलब्ध नहीं। इसका अर्थ यह नहीं है कि वे महापुरुष हुए ही नहीं।" "इस अवसर्पिणी काल में भोगभूमि के अन्त में अर्थात् पाषाणकाल के अवसान पर कृषि काल के प्रारम्भ में पहले तीर्थंकर ऋषभ हुए, जिन्होंने मानव को सभ्यता का पाठ पढ़ाया ।" • "उनके पश्चात् और भी तीर्थकर हुए जिनमें से अनेक का उल्लेख वेदग्रन्थों में भी मिलता है। अतः जैन धर्म भगवान् ऋषभदेव के काल से चला आ रहा है।" भगवान् ऋषभदेव और भरत का जैनेतर पुराणादि में उल्लेख भगवान् ऋषभदेव और सम्राट भरत इतने अधिक प्रभावशाली पुण्यपुरुष हुए हैं कि उनका जैन ग्रन्थों में तो उल्लेख आता ही है, इसके अतिरिक्त वेद के मन्त्रों, जैनेतर पुराणों, उपनिषदों आदि में भी उनका उल्लेख मिलता है । भागवत में मरुदेवी, नाभिराज, वृषभदेव और उनके पुत्र भरत का विस्तृत विवरण मिलता है। यह दूसरी बात है कि वह कितने ही अंशों में भिन्न प्रकार से दिया गया है। फिर भी मूल में समानता है। इस देश का भारत नाम भी भरत चक्रवर्ती के नाम से ही प्रसिद्ध हमा है । निम्नांकित उद्धरणों से हमारे उक्त कथन की पुष्टि होती है : आग्नीध्रसूनो भेस्तु, ऋषभोऽभूत् सुतो द्विजः । ऋषभाद् भरतो जज्ञे, वीरः पुत्रशताद् वरः ।।३।। सोऽभिषिच्यषर्भः पुत्रं, महाप्रावाज्यमास्थितः । तपस्तेपे महाभागः, पुलहाश्रमसंश्रयः ।।४०।। हिमाह्वयं दक्षिणं वर्ष, भरताय पिता ददौ । तस्मात्तु भारतं वर्ष, तस्य नाम्ना महात्मनः ।।४१।। [मार्कण्डेय पुराण, अध्याय ४०] ' (क) दी फिलासफीज प्राफ इण्डिया, पृ० २१७ (ख) अहिंसा वाणी, वर्ष १२, अंक ६. पृ० ३७६ डॉ० कामताप्रसाद के लेख से उद्धत । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy