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जैन धर्म का मौलिक इतिहास
[ श्राश्वर्य
जब कि सुषम - दुःषम नामक तीसरे आारक के समाप्त होने में ८६ पक्ष ( तीन , आठ मास और पन्द्रह दिन) शेष रहे थे, उस समय प्रभु ऋषभदेव निर्वारण " प्राप्त हुए। प्रभु के साथ जिन १०,००० साधुत्रों ने पादपोपगमन संथारा किया था वे भी प्रभु के साथ सिद्धे बुद्ध-मुक्त हुए ।
प्राश्चर्य
काल का सूक्ष्मातिसूक्ष्म अविभाज्य काल, जो समय कहलाता हैं, उस एक ही समय में भगवान् ऋषभदेव के साथ उन १० हजार अन्तेवासियों में से १०७ अन्तेवासी भी मुक्त हुए । अनादिकाल से यह नियम है कि एक समय में उत्कृष्ट अवगाहना वाले दो ही जीव एक साथ सिद्ध हो सकते हैं', दो से अधिक नहीं । किन्तु ५०० धनुष की उत्कृष्ट अवगाहना वाले भगवान् ऋषभदेव और उनके १०७ अन्तेवासी कुल मिलाकर १०८ एक समय में ही सिद्ध हो गये, यह प्रवर्तमान अवसर्पिणीकाल का प्राश्चर्य माना गया है । इस अवसर्पिणी काल में. जो १० प्राश्चर्य घटित हुए हैं, उनमें इस घटना की भी प्राश्चर्य के रूप में 'गरणना की गई है । वे दस आश्चर्य इस प्रकार हैं :
१. उवसग्ग, २. गव्भहरणं, ३. इत्थीतित्थं, ४ प्रभाविया परिसा ।
५. कण्हस्स अवरकंका, ६. उत्तररणं चंद-सूराणं ॥
७. हरिवंसकुलुप्पत्ती, ८. चमरुप्पातो य ६. भ्रट्ठसयसिद्धा । १०. अस्संजतेसु पूना, दस वि श्ररणंतेरण कालेा ॥ स्था. सूत्र, १० स्थान ।
प्रभु के निर्वारण के समय प्रभु सहित उत्कृष्ट अवगाहना वाले १०८, महान् आत्माओं ने एक ही समय में निर्वाण प्राप्त किया। प्रभु के साथ संथारा किये हुए प्रभु के शेष १८६३ श्रन्तेवासियों ने भी उसी दिन थोड़े थोड़े क्षणों के अन्तर से शुद्ध-बुद्ध-मुक्त हो सिद्ध गति प्राप्त की। प्रभु के साथ मुक्त हुए उन १० हजार श्रमणों में प्रभु के गणधर, पुत्र, पौत्र और अन्य भी सम्मिलित थे ।
निर्वाण महोत्सव
भगवान् ऋषभदेव का निर्वारण होते ही सौधर्मेन्द्र शक्र प्रादि ६४ इन्द्रों के प्रासन चलायमान हुए। वे सब इन्द्र अपने-अपने विशाल देव परिवार भौर प्रद्भुत दिव्य ऋद्धि के साथ अष्टापद पर्वत के शिखर पर प्राये । देवराज शत्र
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१ उक्कोसोगाहणाए य, सिज्यंते जुगवं दुबे ॥५४॥ उत्तराध्ययन, म. १६
२ दश आश्चर्यो के सम्बन्ध में विशेष विवरण के लिये प्रस्तुत ग्रन्थ का प्रभु महावीर का "गर्भापहार प्रकरण” देखें
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