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अहिंसात्मक युद्ध] . चक्रवर्ती भरत
१२१ सम्राट् भरत को ज्योंही यह सूचना मिली, तो वे तत्काल वहां पहुंचे और भाइयों से राज्य ग्रहण करने की प्रार्थना करने लगे। पर अट्टानवे भाइयों ने अब राज्य वैभव और माया से अपना मुख मोड़ लिया था, अत: भरत की स्नेह भरी बातें उनको विचलित नहीं कर सकीं, वे अक्षय राज्य के अधिकारी हो गये।
अहिंसात्मक युद्ध ऋषभदेव के द्वितीय पुत्र बाहुबली ने युद्ध में भी अहिंसाभाव रखकर यह बता दिया कि हिंसा के स्थान पर अहिंसा भाव से भी किस प्रकार-मन-परिवर्तन का आदर्श उपस्थित किया जा सकता है ।
ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र सम्राट भरत सम्पूर्ण देशों में अपना अखंड शासन स्थापित करने जा रहे थे । अट्ठानवे भाइयों के दीक्षित हो जाने से उनका मार्ग अधिकांशतः सरल बन चुका था, फिर भी एक बाधा थी कि महाबली को कैसे जीता जाय?
जब तक बाहुबली को आज्ञानुवर्ती नहीं बना लिया जाता, तब तक चक्ररत्न का नगर प्रवेश और चक्रवर्तित्व के एकछत्र राज्य की स्थापना नहीं हो सकती थी । अतः उन्होंने अपने छोटे भाई बाहुबली को यह संदेश पहुंचाया कि वह भरत की अधीनता स्वीकार कर लें।
दूत के मुख से भरत का सन्देश सुनकर बाहबली की भकूटी तन गई। क्रोध में तमतमाते हुए उन्होंने कहा-"अट्ठानवे भाइयों का राज्य छीन कर भी भरत की राज्य-तृष्णा शान्त नहीं हुई और अब वह मेरे राज्य पर भी अधिकार करना चाहता है। उसे अपनी शक्ति का गर्व है, वह सब को दबा कर रखना चाहता है, यह शक्ति का सदुपयोग नहीं, दुरुपयोग है, भगवान द्वारा स्थापित सुव्यवस्था का अतिक्रमण है। ऐसी स्थिति में मैं भी चप्पी नहीं माध सकता । मैं उसे बतला दूंगा कि आक्रमण करना कितना बुरा है।"
बाहवली की यह बात सुनकर दूत लौट गया। उसने भरत के पास प्राकर सारी बात कह सुनाई। भरत के समक्ष बड़ी विकट समस्या उपस्थित हो गई । चक्ररत्न के नगर में प्रविष्ट न होने के कारण एक ओर चक्रवर्ती पद की प्राप्ति के लिये किये गये सब प्रयास निष्फल हो रहे थे तो दूसरी ओर भ्रात-प्रेम और लोकापवाद के कारण भाई के साथ युद्ध करने में मन कुण्ठित हो रहा था। किन्तु चक्रवर्ती नाम कर्म के प्राबल्य के कारण उन्हें भाई पर अाक्रमण करने का निश्चय करना पड़ा। उन्होंने विराट सेना लेकर यद्ध करने हेतु "बहली देश" की सीमा पर प्राकर सेना का पड़ाव डाल दिया।
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