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जैन धर्म का मौलिक इतिहास . [पुत्रों को प्रतिबोध ... इन सब तथ्यों पर तटस्थता से विचार करने पर जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति और कल्पसूत्र की भावना के अनुसार ब्राह्मी और सुन्दरी दोनों बहनों का साथ-साथ दीक्षित होना ही विशेष संगत और उचित प्रतीत होता है। .
... पुत्रों को प्रतिबोष पहले कहा जा चुका है कि ऋषभदेव ने अपने सभी पुत्रों को पृथक्-पृथक ग्रामादि का राज्य देकर प्रव्रज्या ग्रहण की। ... जब भरत ने षट्खण्ड के देशों पर विजय प्राप्त की, तब भ्राताओं को भी अपने प्राज्ञानुवर्ती बनाने के लिए उसने उनके पास दूत भेजे । दूत की बात सुनकर अट्टानवे भाइयों ने मिलकर विचार-विमर्श किया, परन्तु वे कोई निर्णय नहीं कर सके । तब उन सबने सोचा कि भगवान् के पास जाकर बात करेंगे
और उनकी जैसी प्राज्ञा होगी, वैसा ही करेंगे। ....... इस तरह सोचकर वे सब भगवान् के पास पहुंचे और उन्हें सारी स्थिति से अवगत कराते हुए बोले-"भगवन् ! आपने हमको जो राज्य दिया था, वह भाई भरत हमसे छीनना चाहता है। उसके पास कोई कमी नहीं, फिर भी तृष्णा के अधीन हो वह कहता है कि या तो हमारी प्राज्ञा स्वीकार करो अन्यथा युद्ध करने के लिये तैयार हो जाओ। आपके दिये हुए राज्य को हम यों ही दब कर अर्पण करदें, यह कायरता होगी और भाई के साथ युद्ध करें तो विनय-भंग होगा, मर्यादा का लोप हो जायगा। ऐसी स्थिति में आप ही बताइये, हमें क्या करना चाहिये?"
भगवान् ने भौतिक राज्य की नश्वरता और अनुपादेयता बतलाते हुए उनको आध्यात्मिक राज्य का महत्त्व समझाया। - भगवान् के उपदेश का सार सूयगडांग के दूसरे वैतालीय अध्ययन में बताया गया है।
भागवत में भी भगवान् के पुत्रोपदेश का वर्णन इससे मिलता-जुलता ही प्राप्त होता है।
भगवान की दिव्य वाणी में आध्यात्मिक राज्य का महत्त्व और संघर्षजनक भौतिक राज्य के त्याग की बात सुनकर सभी पुत्र अवाक् रह गये ।
___ उन्होंने भगवान् के उपदेश को शिरोधार्य कर इन्द्रियों और मन पर संयम रूप स्वराज्य स्वीकार किया और वे पंच महाव्रत रूप धर्म को ग्रहण कर भगवान् के शिष्य बन गये। 'श्रीमद्भागवत प्रथम खण्ड ५२५२५५६
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