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________________ ब्राह्मी मोर सुन्दरी] चक्रवर्ती भरत ११६ इस प्रकार उपरिलिखित रूप में ब्राह्मी और सुन्दरी के सम्बन्ध में प्राचार्यों ने भिन्न-भिन्न अभिमत व्यक्त किये हैं। जैन वाङमय और धर्मसंघ में ब्राह्मी तथा सुन्दरी इन दोनों बहनों का युगादि से ही बहुत बड़ा महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। युगादि में मानव संस्कृति के निर्माण में इन दोनों का बहुत बड़ा योगदान रहा । सोलह महासतियों में इन दोनों का विशिष्ट स्थान है। दोनों बहनें कुमारावस्था में ही भगवान ऋषभदेव के धर्मशासन में श्रमणीधर्म की आराधना कर सिद्ध-पद की अधिकारिणी बन गई । इनके साधना जीवन के सम्बन्ध में जैसा कि ऊपर बताया गया कुछ प्राचायों में विचारभेद रहा है। श्वेताम्बर परम्परा के पश्चाद्वर्ती साहित्य में ब्राह्मी की दीक्षा तो संघ स्थापना के समय ही मान्य की गई है पर सुन्दरी की दीक्षा ब्राह्मी से ६० हजार वर्ष पश्चात अर्थात भरत चक्रवर्ती के दिग्विजय से लौटने पर मानी गई है। जो विचारणीय है। जैनागम जम्बद्वीप प्रज्ञप्ति में भगवान् ऋषभदेव के साध्वीसंघ का परिचय देते हुए कहा गया है-"उसभस्सरणं अरहो कोसलियस्स बंभीसूदरी पामोक्खामो तिणि अज्जियासयसाहस्सीमो उक्कोसिय प्रज्जिया संपया होत्था ।" कल्पसूत्र में भी ऐसा ही लिखा है कि ऋषभदेव प्रभु के ब्राह्मी-सुन्दरी प्रमुख तीन लाख साध्वियों की उत्कृष्ट संपदा थी। इन दोनों ही मूल पाठों में ब्राह्मी के साथ सुन्दरी को भी ३ लाख साध्वियों में प्रमुख बताया गया है, जो ब्राह्मी और सुन्दरी के साथ-साथ दीक्षित होने पर ही संभव हो सकता है। चक्रवर्ती भरत द्वारा सम्पूर्ण भरतक्षेत्र पर दिग्विजय के पश्चात् सुन्दरी की दीक्षा मानने पर हजारों लाखों साध्वियां उनसे दीक्षावद्ध हो सकती हैं। उस प्रकार की स्थिति में-"बंभी सुदरीपामोक्खाओ" पाठ की संगति कैसे होगी? यह समस्या उपस्थित होती है । इसके अतिरिक्त ध्यानस्थ बाहुबली को प्रतिबोध देने हेतु ब्राह्मी के साथ सुन्दरी के भेजने का भी उल्लेख है, वह भी ब्राह्मी और सुन्दरी का दीक्षा-ग्रहण साथ मानने पर ही ठीक बैठता है। दिगम्बर परम्परा के प्राचार्य जिनसेन' भी जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र के उल्लेख की भांति ही ब्राह्मी और सुन्दरी-दोनों बहनों का एक साथ ही दीक्षित होना मानते हैं। इसके अतिरिक्त यदि सुन्दरी का संघ-स्थापना के समय श्राविका होना स्वीकार किया जाता है तो श्राविका-संघ में सुन्दरी का प्रमुख नाम आना चाहिये, किन्तु जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति और कल्पसूत्र आदि में सुभद्रा को श्राविकाओं में प्रमुख बतलाया गया है, न कि सुन्दरी को। ' महापुराण, २४।१७७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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