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ब्राह्मी और सुन्दरी ]
चक्रवर्ती भरत
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तीर्थंकर और मैं भी भावी तीर्थंकर, क्या इससे बढ़कर भी कोई उच्च कुल होगा ?"
इस प्रकार कुलमद के कारण मरीचि ने वहां नीच गोत्र का बन्ध कर लिया ।"
एक दिन शरीर की अस्वस्थावस्था में जब कोई उसकी सेवा करने वाला नहीं था तो मरीचि को विचार हुआ - " मैंने किसी को शिष्य नहीं बनाया, श्रतः आज सेवा से वंचित रह रहा हूं । अब स्वस्थ होने पर मैं अपना शिष्य अवश्य बनाऊंगा ।"२
समय पाकर उसने कपिल राजकुमार को अपना शिष्य बनाया । " 3 महापुराणकार ने कपिल को ही योगशास्त्र और सांख्य दर्शन का प्रवर्तक माना है ।
इस प्रकार " आदि परिव्राजक" मरीचि के शिष्य कपिल से व्यवस्थित रूप में परिव्राजक परम्परा का प्रारंभ हुआ । ४
ब्राह्मी मौर सुन्दरी
प्रातःस्मरणीया सतियों में ब्राह्मी और सुन्दरी का स्थान महत्त्वपूर्ण है । भगवान् आदिनाथ के १०० पुत्रों में जिस प्रकार भरत और बाहुबली प्रसिद्ध हैं, उसी प्रकार उनकी दोनों पुत्रियां ब्राह्मी और सुन्दरी भी सर्वजन विश्रुत हैं ।
भगवान् ऋषभदेव ने ब्राह्मी के माध्यम से ही जन-समाज को श्रठारह लिपियों का ज्ञान प्रदान किया ।
आवश्यक नियुक्ति के टीकाकार के अनुसार ब्राह्मी का बाहुबलि से और भरत का सुन्दरी से सम्बन्ध बताया गया है ।
यहां यह शंका होती है कि ब्राह्मी और सुन्दरी को बालब्रह्मचारिणी माना गया है, फिर इनका विवाह कैसे ?
संभव है कि 'उस समय की लोक व्यवस्थानुसार पहले दोनों का सम्बन्ध घोषित किया गया हो और फिर भोग-विरति के कारण दोनों ने भगवान् के पास प्रव्रज्या ग्रहण कर ली हो ।
1 आ० म०४२८, ४३१-४३२
२ प्रा० म० प० २४७ । १
3 त्रिषष्टि १।६।५२
Y महापुराण, १८।६२।४०३
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