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भरत की अनासक्ति]
भरत चकवर्ती
लटका दिये जानोगे । कटोरे के तेल की एक बूद नीचे नहीं गिरने दोगे, तभी - तुम मुक्त हो सकोगे।"
उसी समय विनीता नगरी में अनेक प्रकार के अद्भुत नाटकों और संगीत आदि के मनोरंजक आयोजनों का और उस व्यक्ति को तेल से पूर्ण कटोरा ले कर विनीता नगरी में घूमने का आदेश दिया गया। ..
__ भरत के आदेश से भयभीत हुआ वह व्यक्ति आदेशानुसार सम्पूर्ण नगरी में परी सावधानी के साथ घम कर पुनः चक्रवर्ती भरत के पास लौटा । नगर में सब ओर नत्य, नाटक, संगीत आदि के आयोजन चल रहे थे, किन्तु वह व्यक्ति मृत्यु के डर से किसी भी अोर नजर तक उठा कर नहीं देख सका।
भरत ने पूछा- "तुम पूरी विनीता नगरी में घूम आये हो । बतायो नगरी में तुमने कहां-कहां क्या-क्या देखा?"
"महाराज कटोरे के अतिरिक्त मैंने कुछ भी नहीं देखा।" उस व्यक्ति ने विनम्र स्वर में उत्तर दिया।
भरत ने पूछा-"अरे ! क्या तुमने नगर में हो रहे नाटक नहीं देखे ? संगीत मण्डलियों के मधुर संगीत भी नहीं सुने ?"
उस व्यक्ति ने उत्तर दिया-"नहीं महाराज ! जिसकी दृष्टि के समक्ष मृत्यु नाच रही हो, वह नाटक कैसे देख सकता है ? मृत्यु का भय कैसा होता है, यह तो भुक्तभोगी ही जानता है।"
"भाई ! जिस प्रकार तुम एक जीवन के मुत्यु-भय से संत्रस्त थे और उस मृत्यु-भय के कारण नाटक आदि नहीं देख सके, संगीत भी नहीं सुन सके, उसी प्रकार मेरे समक्ष सूदीर्घ काल की मृत्य--परम्परा का भयंकर भय है । अतः साम्राज्य-लीला का उपभोग करते हुए भी मैं उसमें आसक्त नहीं हो पा रहा हं । मैं तन से संसार के भोगोपभोगों और प्रारम्भ-परिग्रह में रह कर भी मन से एक प्रकार से निलिप्त रहता हूं।" भरत ने कहा।
उस शंकाशील व्यक्ति की समझ में यह बात आ गई और भगवान् के वचन के प्रति उसके मन में जो शंका थी, वह तत्काल दूर हो गई।
भरत ने उस व्यक्ति को इस प्रकार शिक्षा दे सादर विदा किया । भरत के जनहितकारी शासन के कारण ही इस देश का नाम भारतवर्ष प्रसिद्ध हुआ।'
वसुदेव हिण्डी, प्र० खण्ड, पृ० १८६ । श्रीमद्भागवत-११-२-१७।नारद पुराण प्र० ४८, श्लोक ५
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