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और शिक्षा ]
प्रथम भरत चक्रवर्ती
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पर्यन्त पानी रहित भक्त प्रत्याख्यान से चन्द्रमा के साथ श्रवरण नक्षत्र का योग होने पर शेष वेदनीय, प्रायुष्य नाम व गोत्र कर्म के क्षीरण अर्थात् निर्मूल होने पर वे कालधर्म को प्राप्त हो जरामरण के बन्धन से विनिर्मुक्त सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हुए । संसार के सब कर्मों का, सब दुःखों का अन्त कर वे सब दुःखों से रहित अर्थात् अनन्त, अक्षय, अव्याघात शाश्वत शिव पद के मोक्ष में विराजे ।
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