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और शिक्षा
प्रथम भरत चक्रवर्ती
अद्भुत् शक्ति एवं गुणों से सम्पन्न उन चौदह रत्नों के अतिरिक्त उनके पास नवनिधियां थीं, जो धन, समृद्धि आदि सभी जीवनोपयोगी उत्तमोत्तम सुखोपभोग की सामग्रियों की अक्षय भण्डार थीं । सोलह हजार देव और बत्तीस हजार मुकुटधारी महाराजा सदा भरत चक्रवर्ती की सेवा में रहते थे । बत्तीस हजार ऋतु कल्याणिकाएं, बत्तीस हजार जनपद कल्याणिकाएं उनकी सेवा के लिए अहर्निश तत्पर रहती थीं । बत्तीस हजार नाट्य निष्णात सूत्रधार बत्तीस प्रकार के नाटकों से भरत चक्रवर्ती का सदा मनोरंजन करते थे। उनकी सेवा में तीन सौ साठ पाकविद्या में निष्णात पाकशालाओं के अधिकारी थे । अठारह श्रेणियां और अठारह प्रश्रेणियां उनके इंगित मात्र पर उनकी प्राज्ञा का पालन करने के लिए तत्पर रहती थीं।
चक्रवर्ती भरत की सैन्य शक्ति अजेय, अभेद्य, अनुपम और सदा सर्वत्र विजयिनी थी। उनकी चतुरंगिणी विशाल सेना में चौरासी लाख अश्व (अश्वारोही), चौरासी लाख हस्ती (गजारोही), चौरासी लाख रथ (रथी सैनिक) और छयानवे करोड़ पदातियों की सेना थी।।
उनका सम्पूर्ण भरत क्षेत्र पर एकच्छत्र राज्य था। उनके राज्य में बहत्तर हजार राजधानियों के बड़े नगर, बत्तीस हजार देश, छयानवे करोड़ ग्राम, नन्यानवे हजार द्रोणमुख, अडतालीस हजार पत्तन, चौबीस हजार कर्बट चौबीस हजार मंडप, बीस हजार आगर, सोलह हजार खेड़े, चौदह हजार संबाह, छप्पन हजार अन्तरोदक अर्थात् अन्तरद्वीप, उनचास भिल्ल आदि के कुराज्य थे।
वे सम्पूर्ण भरत क्षेत्र के षट्खण्डों की राजधानी विनीता नगरी में रहते हुए चुल्लहिमवन्त पर्वत से लेकर लवण समुद्र पर्यन्त सम्पूर्ण भरत क्षेत्र पर, सम्पूर्ण भरत क्षेत्र के सभी राजेश्वरों, राजाओं और सम्पूर्ण प्रजा पर न्याय नीति पूर्वक सुचारु रूप से शासन करते थे । भरत चक्रवर्ती ने अपने राज्य के सभी शत्रयों को कांटे की तरह निकाल कुचल कर निम्ल कर दिया था। इस प्रकार उन्होंने सभी शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी। वे सम्पूर्ण भरत क्षेत्र के स्वामी, मनुष्यों में इन्द्र के समान दिव्य, हार, मुकुट, वस्त्र, आभूषण और षड्ऋतुओं के सुमनोहर सुगन्धित सुमनों की माला धारण करने वाले, उत्कृष्ट, नाटकों एवं नत्यों का आनन्द लेते हए ६४ हजार स्त्रियों के समूह से परिवृत, सब प्रकार की औषधियों, सब प्रकार के रत्नों से परिपूर्ण मनोरथ, शत्रु-मद भंजक, पूर्वकृत तप के प्रभाव से पुण्य का फल भोगने वाले, इस प्रकार के मनुष्य सम्बन्धी सुखप्रद कामभोगों का उपभोग करने वाले वे भरत नामक चक्रवर्ती थे। चक्रवर्ती भरत एक हजार वर्ष कम छः लाख पूर्व तक चक्रवर्ती पद पर रहते हुए प्रजा का पालन और इस के सुखोपभोगों का उपभुजन करते रहे।
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