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१०८ जैन धर्म का मौलिक इतिहास
[संवर्द्धन न ले । नगर के निवासी, जनपदों के निवासी, समस्त देश के निवासी बारह वर्ष पर्यन्त प्रमोद करो, आनन्दोत्सव करो।"
भरत चक्रवर्ती के इस आदेश को सुन कर उनके कौटुम्बिक पुरुष बड़े हर्षित हुए, हर्षातिरेक से उनके हृदय कमल प्रफुल्लित हो गये । उन्होंने चक्रवर्ती की आज्ञा को शिरोधार्य किया और तत्काल हाथी की पीठ पर बैठ कर उन्होंने भरत चक्रवर्ती की आज्ञा की घोषणा विनीता नगरी के बाह्याभ्यन्तर सभी स्थानों में कर दी।
__ महाराज्याभिषेक सम्पन्न होने पर चक्रवर्ती सम्राट् भरत अभिषेक सिंहासन से उठे और स्त्री-रत्न आदि समस्त अन्तःपुर के परिवार राजाओं, सेनापति रत्न आदि रत्नों एवं पूर्व वणित ऋद्धि के साथ विनीता नगरी के मध्यवर्ती राजपथ से नागरिकों द्वारा स्थान-स्थान पर अभिनन्दित एवं वर्धापित होते हुए उसी क्रम से राजप्रासाद में लौटे जिस प्रकार कि अभिषेक मण्डप मे गय थे।
__ स्नानादि से निवृत्त हो उन्होंने अष्टमभक्त तप का पारण किया और सम्पूर्ण भरत क्षेत्र पर सुचारु रूप से शासन करते हुए चक्रवर्ती की सम्पूर्ण ऋद्धि का सुखोपभोग करते हुए वे सुखपूर्वक रहने लगे । बारह वर्ष तक उनके षट्खण्ड राज्य की प्रजा ने उनके महाराज्याभिषेक का महा महोत्सव मनाया।
बारह वर्ष का महा महोत्सव सम्पूर्ण होने पर महाराज भरत ने देवों, राजाओं आदि को सत्कार-सम्मानपूर्वक विसजित किया । प्रजाजनों को अनेक प्रकार की सुविधाएं प्रदान की। उनके राज्य की समस्त प्रजा पूर्ण रूप से सुखी और समृद्ध थी। सब प्रजाजन अपने-अपने कर्तव्य का पालन करते हुए निर्भय होकर सुखमय जीवन व्यतीत करते थे । चक्रवर्ती भरत ने अपनी सम्पूर्ण प्रजा के कल्याण के लिए अनेक स्थायी कार्य किये । उनके राज्यकाल में राज्य और प्रजा दोनों की ही समृद्धि में विपुल अभिवृद्धि हुई ।
___चक्रवर्ती भरत की ऋद्धि-समृद्धि अतुल, अद्भुत और अलौकिक थी। उनके पास चौदह रत्न थे। उन चौदह रत्नों में से चक्र रत्न, दण्ड रत्न, खड्ग रत्न, छत्र रत्न-ये चार एकेन्द्रिय रत्न महाराजा भरत की आयुध शाला में उत्पन्न हए । चर्मरत्न, मरिणरत्न और काकिणीरत्न-ये तीन एकेन्द्रियरत्न उनके भण्डार में उत्पन्न हुए । उनके सेनापति रत्न, गाथापति रत्न, वाद्धिकरत्न और पुरोहितरत्न-ये चार मनुष्य रत्न महाराज भरत की राजधानी विनीता नगरी में उत्पन्न हुए । अश्वरत्न एवं हस्तिरत्न-ये दोनों तिर्यंच पंचेन्द्रिय रत्न वैताढ्य पर्वत की तलहटी में उत्पन्न हए । चक्रवर्ती भरत की भद्रा नाम की स्त्रीरत्न विद्याधरों की उत्तर दिशा की श्रेरिण में उत्पन्न हई ।
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