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और शिक्षा
प्रथम चक्रवर्ती भरत
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वीणावाहक, तेल के भाजन ले कर चलने वाले, हड़ नामक द्रव्य के भाजन को लेकर चलने वाले लोग अपने-अपने उपकरणों के अनुरूप चिह्न एवं वेशभूषा पहने हुए चलने लगे। उनके पीछे दण्डी, रुण्ड-मुण्ड, शिखाधारी, जटाधारी, मयूर आदि की पिच्छियों को धारण करने वाले, हास्य करने वाले, द्यूतक्रीडा का पटिया उठाने वाले, कुतूहल करने वाले, मीठे वचन बोलने वाले, चाटुकार कन्दप की चेष्टा करने वाले, वाक्शूर, गायक, वादक, नर्तक आदि नाचते, हँसते, खेलते, कूदते, क्रीड़ा करते हुए अपना तथा दूसरों का मनोरंजन-मनोविनोद, करते हुए, शुभ वचन बोलते हुए एवं जयघोषों से नभमंडल को गुंजायमान करते हुए, राजराजेश्वर भरत के सम्मुख अग्रभाग में सभी प्रकार के श्रेष्ठ अश्वालंकारों से सुचारु रूपेण शृंगारित श्रेष्ठ जाति के लम्बे चौड़े अश्व (सिणगारू घोड़े), उन प्रश्वों की बाग पकड कर चलने वाले, चल रहे थे । भरत के वाम और दक्षिण दोनों पावों में अंकुशधरों (महावतों) सहित मदोन्मत्त गजराज और महाराज भरत के पृष्ठ भाग में सारथियों द्वारा कुशलतापूर्वक संचालित अश्वरथों की श्रेणियां चल रही थीं।
इस प्रकार शैलेन्द्र की शिला के समान विशाल वक्षस्थल पर झूमती हुई हारावलियों से सुरेन्द्र के समान शोभायमान, दिग्दिगन्त में लब्धप्रतिष्ठ, सम्पूर्ण भरत क्षेत्र के एकच्छत्र सम्राट नरेश्वर भरत चक्ररत्न द्वारा प्रदर्शित पथ पर कल्लोलित सागर की लोल लहरों के समान कल-कल निनाद करती हुई सेना तथा जनसमूह के साथ ग्राम, नगर आदि को उलांघते एवं एक-एक योजन के अन्तर पर पड़ाव डालते हुए एक दिन विनीता नगरी के पास आ पहुँचे । नगरी के बाहर बारह योजन लम्बे, नव योजन चौड़े स्कन्धांवार और महाराज भरत के लिए आवास एवं पोषघशाला का निर्माण वाद्धिक रत्न ने मुहूर्त मात्र में ही सम्पन्न कर दिया।
पौषध शाला में प्रवेश कर महाराज भरत ने विनीता राजधानी के देव की आराधना के लिए अष्टमभक्त तप किया । अष्टमभक्त तप के पूर्ण होने पर पौषध शाला से बाहर आ वे सुसज्जित अभिषेक हस्ति पर प्रारूढ़ हुए। उनके सम्मुख, दोनों पाश्वों और पीछे की ओर पूर्व वरिणत अनुक्रम से अष्टमंगल, १४ रत्न, सोलह हजार देव, ३२ हजार मुकुटधारी महाराजा और विशाल जनसमूह जयघोषों से धरती और आकाश को गुंजाता हुआ चलने लगा। महानिधियां और चतुरंगिरणी सेना ने नगर में प्रवेश नहीं किया।
___इस प्रकार की अमरेन्द्र तुल्य ऋद्धि के साथ भरत ने विनीता नगरी में प्रवेश किया। विनीता नगरी उस समय नववधु के समान सजी हुई थी। उसके चप्पे-चप्पे को प्रमाणित एवं स्वच्छ करने के पश्चात् उसके बाह्याभ्यन्तर सभी भागों पर गन्धोदक का छिटकाव किया गया था । चमकते हुए रंगों से प्रत्येक
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