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जैन धर्म का मौलिक इतिहास
[ संवर्द्धन
पर विजय प्राप्त करो, उसके सम अथवा विषम सभी स्थानों पर अधिकार कर वहां के शासकों से भेंट ग्रहण कर शीघ्र ही मेरे पास लौट कर आश्रो ।"
सेनापतिरत्न ने सदल-बल विजय अभियान कर गंगा महानदी के पूर्ववर्ती लघु खण्ड को जीत वहां के शासकों से भेंट ग्रहण कर भरत की सेवा में लौटकर उन्हें सूचित किया कि उनकी आज्ञा का पूर्णरूपेण पालन कर दिया गया है ।
कुछ समय पश्चात् एक दिन चक्ररत्न श्रायुधशाला से बाहर निकला और आकाश मार्ग से भरत चक्रवर्ती की विशाल सेना के मध्य भाग में होता हुआ विनीता नगरी की ओर अग्रसर हुआ ।
यह देखकर भरत महाराज बड़े हृष्ट व तुष्ट हुए । उन्होंने सेना को विनीता की ओर प्रस्थान के लिये तैयार होने तथा अपने लिये अभिषेक हस्ति को सुसज्जित करने का प्रादेश दिया ।
विनीता नगरी की ओर प्रस्थान करने हेतु सम्पूर्ण दल-बल और चतुरंगिणी सेना को सन्नद्ध एवं समुद्यत तथा अपने अभिषेक हस्ति को सुसज्जित देख चौदह रत्नों और नव निधियों के स्वामी, परिपूर्ण कोषों से सम्बद्ध, अहर्निश आज्ञापालन में तत्पर ३२ हजार मुकुटधारी महाराजानों से सेवित, शत्रुमात्र पर विजय करने वाले चक्रवर्ती भरत ६० हजार वर्षों की अवधि में सम्पूर्ण भरत क्षेत्र के ६ खण्डों की साधना करने के अनन्तर अपनी मुख्य राजधानी विनीता नगरी की ओर लौटने के लिए हस्तिरत्न पर आरूढ़ हुए । कोटि-कोटि कण्ठों से उद्गत उनके जयघोषों से गिरि, गगन और धरातल प्रतिध्वनित हो उठे । उनके सम्मुख सबसे आगे स्वस्तिक, श्री वत्स आदि अष्ट मंगल, उनके पीछे पूर्ण कलश, भारी, दिव्य छत्र तदनन्तर वैडूर्य रत्नमय विमल दण्डयुत छत्रधर अनुक्रमशः चलने लगे । उनके पीछे अनुक्रमशः ७ एकेन्द्रिय रत्न, १. चक्र रत्न, २. छत्र रत्न, ३. चर्म रत्न, ४. दण्ड रत्न, ५. खड्ग रत्न, ६. मरिण - रत्न और ७. काकिणी रत्न चलने लगे । चक्रवर्ती के उन ७ एकेन्द्रिय रत्नों के पीछे नव निधि रत्न चले । उनके पीछे अनुक्रमशः १६ हजार देव चले । देवों के पीछे क्रमशः ३२ हजार महाराजा, सेनापतिरत्न, गाथापतिरत्न, वाकिरत्न और पुरोहितरत्न तथा स्त्रीरत्न चले । स्त्री रत्न के पीछे अनुक्रमशः बत्तीस हजार ऋतु कल्याणिका, उतनी ही जनपद कल्याणिका, बत्तीस प्रकार के नाटक करने वाले बत्तीस हजार पुरुष, ३६० रसोइये, अठारह श्रेणी प्रश्रेणियाँ, चौरासी लाख घोड़े, चौरासी लाख हाथी, चौरासी लाख रथ और छयानवे कोटि पदातियों की सेना चली। सेना के पीछे बहुत से राजा, ईश्वर, युवराज तलवर, सार्थवाह आदि चले । उनके पीछे अनेक खड्गधर, दण्डधर, मालानों को रखने वाले, चामर बींजने वाले, धनुर्धर, द्यूतक्रीड़क, परशुधर, पुस्तकधारी,
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