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और शिक्षा
प्रथम चक्रवर्ती भरत
शाला का निर्माण करवाया। पौषधशाला में जाकर महाराज भरत ने नव निधिरत्नों की आराधना हेतु पूर्वोक्त विधि के अनुसार पौषध सहित अष्टमभक्त तप किया। यह भरत का ११वां अष्टमभक्त तप था। उस तप में डाभ के
आसन पर बैठे हुए व एकाग्रचित्त से निधि रत्नों का चिंतन करते रहे । नवनिधि के अपरिमित रक्त रत्न शाश्वत, अक्षय एवं अव्यय हैं । उनके अधिष्ठाता देव हैं। वे नव निधिरत्न लोक की पुष्टि करने वाले एवं विश्वविख्यात हैं।
___ अष्टम तप का समापन होते-होते वे नव निधिरत्न महाराज भरत के पास ही रहने के लिये प्रा उपस्थित हुए। उन नव निधिरत्नों के नाम इस प्रकार हैं :
१. नैसर्प, २. पाण्डक, ३. पिंगल, ४. सर्वरत्न, ५. महापद्म, ६. काल, ७. महाकाल, ८. माणवक और ६. महानिधान शंख ।
ये नव निधान सन्दक के समान होते हैं । इनमें से प्रत्येक के आठ-आठ चक्र (पहिये) होते हैं । ये आठ-आठ योजनकी ऊँचाई वाले, नव-नव योजन चौड़े और बारह-बारह योजन लम्बे संदूक के संस्थान वाले होते हैं। महानदी गंगा जिस स्थान पर समुद्र में मिलती है, वहां ये नवों ही निधान रहते हैं। इनके वैडूर्य रत्नों के कपाट होते हैं। इनकी स्वर्णमयी मंजषाएं अनेक प्रकार के रत्नों से परिपूर्ण रहती हैं । इन सबके द्वार चन्द्र, सूर्य और चक्र के चित्रों से चित्रित रहते हैं। इनमें से प्रत्येक के अधिष्ठाता जो देव हैं, उनका एक-एक पल्योपम का प्रायुष्य होता है । जिस-जिस निधान के जो-जो देव हैं, उनका नाम भी उस-उस निधान के नाम जैसा ही होता है। उन देवताओं के आवास (निवास) वे निधान ही हैं। वे नव निधिरत्न अपार धन, रत्न आदि के संचय से समृद्ध होते हैं, जो भरत आदि चक्रवतियों के पास चले जाते हैं अर्थात् जहां-जहां चक्रवर्ती जाता है, वहां-वहां उसके पांवों के नीचे धरती में ये नव निधान चलते हैं।
___ नव निधानों को अपना वशवर्ती बनाकर महाराज भरत ने स्नानादि से निवृत्त हो अपने ग्यारहवें अष्टमभक्त तप का पारण किया। तप के पारण के पश्चात् भोजनशाला से निकलकर वे उपस्थानशाला में राजसिंहासन पर आसीन हुए। उन्होंने अठारह श्रेणी प्रश्रेणियों को बुलाकर नव निधिरत्नों का अष्टाह्निक महामहोत्सव मनाने का आदेश दिया ।
नव निधियों के अष्टाह्निक महामहोत्सव के पूर्ण होने पर उन्होंने अपने सेनापति को आदेश दिया-"देवानुप्रिय ! पश्चिम में जिसकी गंगा महानदी सीमा है, पूर्व तथा दक्षिण में लवण समुद्र जिसकी सीमा है और उत्तर में जिसकी सीमा वैताढ्य पर्वत तक है, उस गंगा महानदी के पूर्ववर्ती लघु खण्ड
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