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जैन धर्म का मौलिक इतिहास
[संवर्दन
पौषधवत अंगीकार किया । ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए भरत ने नमी और विनेमी नामक विद्याधर राज का मन में ध्यान किया। इस प्रकार नमी विनमी का ध्यान करते हुए जब भरत का अष्टमभक्त तप पूर्ण होने पाया, उस समय उन दोनों विद्याधर राजों को उनकी दिव्य मति से प्रेरणा मिली। वे दोनों परस्पर मिले और एक दूसरे को कहने लगे-"जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में भरत नामक चक्रवर्ती उत्पन्न हुए हैं । भूत, भविष्यत और वर्तमान काल के विद्याधर राजाओं के परम्परागत जीताचार के अनुसार हमें भी चक्रवर्ती के योग्य भेंट लेकर उनकी सेवा में उपस्थित होना चाहिये।"
___ इस प्रकार का निश्चय कर विद्याधरों की दक्षिण श्रेणी के राजा नमी ने उत्तम वस्त्राभूषणादि और उत्तर श्रेणी के विद्याधर राज विनमी ने दिव्य मति की प्रेरणा से रूप, लावण्य और स्त्रियोचित सभी उत्तमोत्तम शुभ गणों में अनिन्द्य सुन्दरी देवांगनाओं को भी तिरस्कृत करने वाला 'सुभद्रा' नामक स्त्रीरत्न भरत को भेंट करने के लिये अपने साथ लिया और वे दोनों उत्कृष्ट विद्याधर गति से भरत के पास आये। उन दोनों ने जय-विजय घोषों से भरत को वडापित करते हुए निवेदन किया-"अहो देवानप्रिय ! आपने भरतक्षेत्र पर विजय प्राप्त की है। हम आप द्वारा शासित देश में रहने वाले आपके प्राज्ञाकारी किंकर हैं । कृपा कर आप हमारी ओर से यह प्रीतिदान ग्रहण करें।"
भरत के समक्ष इस प्रकार निवेदन कर विनमी ने सुभद्रा नामक स्त्रीरत्न और नमी ने अत्युत्तम वस्त्र, आभूषण अलंकारादि भरत को भेंट किये। भरत ने उन दोनों विद्याधर राजों द्वारा समर्पित की गई भेंट स्वीकार की, उन दोनों का आदर-सत्कार किया और तदनन्तर उन्हें सम्मानपूर्वक विदा किया।
नमी और विनमी विद्याधरों को विसर्जित करने के उपरान्त भरत ने स्नानादि से निवृत्त हो अपने आठवें अष्टमभक्त तप का पारण किया । तदनन्तर भरत ने उपस्थान शाला में सिंहासन पर आसीन हो अपनी प्रजा को कर, शुल्क आदि से विमुक्त कर विद्याधरराज का अष्टाह्निक महोत्सव मनाने का आदेश दिया। आठ दिन तक उत्तम अशन-पान, नृत्य, संगीत, नाटक आदि विविध सुखोपभोगों का उपभोग करते हुए सब ने बड़े हर्षोल्लास के साथ अष्टाह्निक महोत्सव मनाया।
___ अष्टाह्निक महोत्सव के समाप्त होते ही चक्ररत्न आयुधशाला से निकल कर गगन पथ से ईशान कोण में गंगादेवी के भवन की ओर अग्रसर हुआ। अपनी सेना के साथ चक्ररत्न का अनुगमन करते हुए भरत गंगानदी के भवन के पास आये । सेना का पड़ाव डाल भरत ने पौषधशाला में गंगादेवी की आराधना के लिये पौषध सहित अष्टम भक्त तप किया। यह भरत चक्रवर्तीका ६ वां
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