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जैन धर्म का मौलिक इतिहास
[संवर्द्धन आगे की ओर बढ़ते देखा। उस अग्रिम सैनिक टुकड़ी को देखते ही वे बड़े क्रुद्ध हुए, उनका खून खोलने लगा और उसके परिणामस्वरूप उनकी आंखें लाल हो गई । वे एक दूसरे को सावधान कर एकत्रित हुए और विचार विनिमय करते हुए कहने लगे कि यह अपनी अकाल मृत्यु की कामना करने वाला दुष्ट, पुण्यहीन चतुर्दशी और अमावस्या का जन्मा हुअा निर्लज्ज और निस्तेज कौन है, जो हमारे देश पर सेना लेकर चढ़ आया है। अहो देवानुप्रियो ! इसको पकड़ो, जिससे कि यह फिर कभी हमारे देश पर सेना लेकर आने का सहस न कर सके ।
__ इस प्रकार परस्पर विचार कर वे लोग कवच सहित पट्ट आदि धारण कर भिन्न-भिन्न प्रकार के शस्त्रास्त्रों से सन्नद्ध हो महाराज भरत की सेना की अग्रिम टुकड़ी पर टूट पड़े। उन आपात जाति के चिलात योद्धाओं ने विशाल बलवाहन के साथ भरत महाराज की सेना की उस अग्रिम टुकड़ी पर शस्त्रास्त्रों के एक साथ अनेक प्रहार किये । उन्होंने उस अग्रिम टुकड़ी के पदातियों के मुकुट, ध्वजा, पताका आदि चिह्नों को गिरा दिया, उनमें से अनेकों को मारा, अनेकों को घायल किया। शेष उन युद्ध-शौण्डीर आपात-चिलातों से पूर्णतः पराजित हो दशों दिशाओं में पलायन कर गये ।
जब भरत महाराज के सेनापतिरत्न ने देखा कि उसकी सेना की अग्रिम टुकड़ी को चिलातों ने पूर्णतः पराजित कर दिया है, दशों दिशाओं में भगा दिया है, तो वे क्रोधातिरेक से दाँत पीसने लगे, उनके विशाल लोचन लाल हो गये। वे इन्द्र के अश्वरत्न उच्चैश्रवा से भी स्पर्धा करने वाले अपने कमलमेल नामक अश्व पर आरूढ़ हो, एक हजार देवताओं द्वारा अहनिश सेवित खड्गरत्न महाराज भरत से लेकर उन आपात चिलातों पर गरुड़ वेग से झपटे । सेनापति द्वारा किये गये खड्ग-प्रहारों से उन आपात जाति के किरातों के बड़ेबड़े योद्धा धराशायी होने लगे। सुषेण सेनापति ने विद्युत्वेग से खड्ग चलाते हुए भीषण प्रहारों से कुछ ही क्षणों में आपात किरातों की सेना को हत, आहत एवं क्षत-विक्षत कर पलायन के लिये बाध्य कर दिया । आपात किरातों की सेना का कोई भी सुभट सुषेण सेनापति के सम्मुख क्षण भर भी नहीं टिक सका । कुछ ही क्षणों में आपात किरातों की सेना में भगदड़ मच गई, वे सब दशों दिशाओं में भाग खड़े हुए। सुषेण सेनापति के खड़गप्रहारों से वे इतने हतप्रभ. उद्विग्न और किंकर्तव्य विमूढ़ हुए कि वे सब रणांगण छोड़ वहां से अनेकों योजन दर पीछे की ओर पलायन कर गये। वहां वे सब एकत्रित हो और कोई उपाय न देख सिन्धु नदी के तट के समीप गये। वहां उन्होंने नदी की बालू रेती का संस्तारक अर्थात् बिछौना बनाया। तदनन्तर सबने अष्टमभक्त तप ग्रहण किया । वे सब कपड़ों को उतार, पूर्णरूपेण नग्न हो अपने उन मिट्टी के संस्तारकों पर ऊपर की ओर मुख किये लेट गये । अष्टमभक्त तप में इस
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