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और शिक्षा]
प्रथम चक्रवर्ती भरत
शिरोधार्य किया और देखते ही देखते उन दोनों महानदियों पर सैंकड़ों स्तम्भों के आधार से संयुक्त एक अति विशाल एवं अतीव सुदृढ़ सेतु निर्मित कर दिया। सुदृढ़ सेतु का निर्माण करने के पश्चात् वाद्धिक रत्न ने भरत की सेवा में उपस्थित हो निवेदन किया-"देव ! आपकी आज्ञा का अक्षरशः पालन कर दिया गया है । देवानुप्रिय सुदृढ़ सेतु तैयार है।
तदनन्तर भरत ने उस सेतु पर होते हुए अपनी सेना के साथ उन दोनों महानदियों को पार कर तिमिस्रप्रभा गुफा के उत्तरी द्वार की ओर प्रस्थान किया। भरत के वहां पहुंचते ही उस गुफा के उत्तरी द्वार के कपाट कड़-कड़ निनाद के साथ स्वतः खुल गये । संना सहित गुफा से पार हो महाराज भरत ने आगे की ओर प्रयाण किया ।
उस समय भरतक्षेत्र के उस उत्तरार्द्ध विभाग में आपात नामक चिलात अर्थात म्लेच्छ जाति के लोग रहते थे। वे आपात लोग बड़े ही समद्ध एवं तेजस्वी थे । वे विशाल एवं विस्तीर्ण भवनों में रहते थे। उनके पास गृह, शैया, सिंहासन, रथ, घोड़े, पालकी आदि का प्राचुर्य था। उनके भण्डार स्वरर्ण-रत्न आदि से परिपूर्ण थे। उनके वहां अन्न का उत्पादन बहुत अधिक होता था । अशन, पान, खादिम, स्वादिम आदि सामग्रियों से उनके कोष्ठागार भरे पड़े थे। उनके पास बहुत बड़ी संख्या में दास, दासी, गाय, भैंस, भेड़, बकरी आदि थे। वे सब बड़े वैभवशाली, बलिष्ठ, हृष्ट-पुष्ट, शूरवीर, मनुष्यों में अपराभूत, अजेय, योद्धा और संग्राम में अमोघ लक्ष्य वाले थे। उनके पास बल और वाहनों का बाहुल्य था। जिन दिनों महाराज भरत ने अपनी चतुरंगिणी सेना के साथ षटखण्ड की साधना के लिये दिग्विजय का अभियान प्रारम्भ किया उन दिनों आपात चिलात नामक म्लेच्छ राजाओं के उस देश में, अकाल में गर्जन, अकाल में तडित् की कड़क, अकाल में ही वृक्षों पर पुष्प-फल आदि का उत्पन्न हो जाना और आकाश में प्रेत जाति के देवों का नृत्य आदि अनेक प्रकार के उत्पात होने लगे। इन उपद्रवों को देख वे लोग बड़े चिन्तित हुए। जहां कहीं वे लोग एकत्रित होते, परस्पर यही बात करते कि हमारे देश में न मालूम कैसा उपद्रव होने वाला है। इन उत्पातों को देखकर तो यही अनुमान होता है कि हमारे देश में कोई न कोई भीषण उत्पात होने वाला है। अनिष्ट की आशंका से वे लोग शोक सागर में निमग्न रहने लगे। अपनी हथेली पर कपोल रखकर वे लोग आर्त ध्यान करने लगे । उनमें से अधिकांश लोग किंकर्तव्यविमूढ़ बने भूमि पर दृष्टि गड़ाये ही बैठे रह जाते ।
जिस समय महाराज भरत तिमिस्रप्रभा गफा के उत्तरी द्वार से बाहर निकल कर उन प्रापात चिलातों के देश में आगे बढ़ रहे थे उस समय उन आपात चिलात म्लेच्छों ने महाराज की सेना के अग्रिम कटक को अपने देश में
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