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और शिक्षा ]
प्रथम चक्रवर्ती भरत
आगे तुरी, शंख, पटह, परणव, मेरी, झल्लरी, मुरज, मृदंग, दुंदुभी प्रादि वाद्यवृन्दों के कुशल वादक अपने अपने वाद्ययन्त्रों की सधी हुई सुमधुर ध्वनि से जन-जन के मन को मुग्ध करते हुए चल रहे थे । विभिन्न देशों की दासियों के हाथों में चन्दनकलश, पुष्पकरंडक, रत्नकरंडक, विविध वस्त्राभूषणों की चंगेरियां, पंखे, गंधपिटकों एवं चूर्णों आदि की चंगेरियां थी । इस प्रकार की अतुल ऋद्धि एवं दल-बल के साथ पग-पग पर सम्मानित एवं वर्द्धापित होते हुए महाराज. भरत आयुधशाला में पहुंचे। उन्होंने चक्ररत्न को देखते ही प्रणाम किया । तदनन्तर चक्ररत्न के पास जाकर उन्होंने उसे सर्वप्रथम मयूरपिच्छ से प्रमार्जित किया। तत्पश्चात् दिव्य जल की धारा से चक्ररत्न को सिंचित कर उस पर गोशीर्ष चन्दन का विलेपन किया और कालागरु, गन्ध, माल्यादि से उसका प्रर्चन कर उस पर उन्होंने पुष्प, गन्ध, वर्ण, चूर्ण, वस्त्र एवं आभरण आरोपित किये । तदनन्तर चक्ररत्न के समक्ष रजतमय श्वेत, सुकोमल एवं शुभ लक्षण वाले समुज्ज्वल चावलों से स्वस्तिक, श्रीवत्स, नन्द्यावर्त वर्द्धमान, भद्रासन, मत्स्य, कलश और दर्पण - इन आठ मंगलों की रचना की । तदनन्तर महाराज भरत ने पांच वर्ण के सुमनोहर पुष्पों से अपनी अंजलि भर उन्हें अष्टमंगल पर विकीर्ण किया । इसके पश्चात् भरत ने चन्द्रकान्त, हीरे और वैडूयं रत्न से निर्मित दण्ड वाले स्वर्ण मरिण, रत्नादि से मण्डित वैडूर्य रत्न के धूप कड़कुल से सुगन्धित धूम्र के गोट निकालने वाले कृष्णागरु, कु दरुक्क और तुरुष्क का धूप दिया । तदनन्तर सात-आठ कदम पीछे की ओर सरक कर अपनी देहयष्टि को झुका दक्षिण जानु को खड़े रखकर और वाम जानु को पृथ्वी से लगाकर चक्ररत्न को प्रणाम किया ।
इस प्रकार चक्ररत्न को स्वागतपूर्वक बधाने के पश्चात् भरत अपनी उपस्थानशाला में लौटे और राजसिंहासन पर आसीन हो उन्होंने अठारह श्रेणी प्रश्रेणियों के लोगों को बुलाकर उन्हें कर, शुल्क, दण्ड आदि से मुक्त एवं अनेक प्रकार की सुविधाएं प्रदान कर आठ दिन तक चक्ररत्न का महामहिमामहोत्सव मनाने का आदेश दिया। नागरिकों ने विनीता नगरी को भलीभाँति सजाया, स्थान-स्थान पर नृत्य, संगीत, नाटकों प्रादि का आयोजन किया । नगर में सर्वत्र ग्रामोद-प्रमोद और हर्षोल्लास का वातावरण व्याप्त हो गया । रंग-बिरंगे परिधान और बहुमूल्य प्राभूषणों से सुशोभित नर-नारीवृन्द श्रानन्द के सागर में कल्लोल करता हुआ भूम उठा। विनीता नगरी इन्द्रपुरी अलका सी सुशोभित होने लगी । आठ दिन तक विनीता नगरी में आमोद-प्रमोद श्रीर हर्षोल्लास का साम्राज्य छाया रहा ।
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महामहिमा महोत्सव की प्रष्टाका अवधि के समापन के साथ ही चक्ररत्न प्रायुधशाला से निकला। एक हजार देवों से सुसेवित वह चक्ररत्न दिव्य
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