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आदि प्रभु का समवसरण ] भगवान् ऋषभदेव (१) लक्षणयुक्त हो,
(२०) मर्मवेधी न हो, (२) उच्च स्वभावयुक्त हो, (२१) धर्मार्थरूप पुरुषार्थ की पुष्टि (३) ग्रामीणता यानी हल्के शब्दादि करने वाली हो, से रहित हो,
(२२) अभिधेय अर्थ की गम्भीरता (४) मेघ जैसी गम्भीर हो,
वाली हो, (५) अनुनाद अर्थात् प्रतिध्वनियुक्त हो, (२३) प्रात्म-प्रशंसा व पर-निन्दा (६) वक्रता-दोष-रहित सरल हो,
रहित हो, (७) मालकोशादि राग-सहित हो, (२४) श्लाघनीय हो, (८) अर्थ-गम्भीर हो,
(२५) कारक, काल, वचन और लिंग (६) पूर्वापर विरोधरहित हो,
प्रादि के दोषों से रहित हो, (१०) शिष्टतासूचक हो,
(२६) श्रोताओं के मन में प्राश्चर्य पैदा (११) सन्देहरहित हो,
करने वाली हो, (१२) पर-दोषों को प्रकट न करने (२७) अद्भुत अर्थ-रचना वाली हो, वालो हो,
(२८) विलम्बरहित हो, (१३) श्रोताओं के हृदय को आनन्द (२६) विभ्रमादि दोषरहित हो, देने वाली हो,
(३०) विचित्र प्रर्थ वाली हो, (१४) बड़ी विचक्षणता से देश काल के (३१) अन्य वचनों से विशेषता अनुसार हो,
वाली हो, (१५) विवक्षित विषयानुसारी हो, (३२) वस्तुस्वरूप को साकार रूप में (१६) असम्बद्ध व अतिविस्तार
प्रस्तुत करने वाली हो, रहित हो,
(३३) सत्त्वप्रधान व साहसयुक्त हो, (१७) परस्पर पद एवं वाक्या- (३४) स्व-पर के लिए खेदरहित नुसारिणी हो,
हो, और (१८) प्रतिपाद्य विषय का उल्लंघन (३५) विवक्षित अर्थ की सम्यसिद्धि करने वाली न हो,
तक अविच्छिन्न अर्थ वाली हो । (१६) अमृत से भी अधिक मधुर हो,
मरत का विवेक जिस समय भगवान् ऋषभदेव को केवलज्ञान की उपलब्धि हुई उस समय सम्पूर्ण लोक में ज्ञान का उद्योत हो गया । नरेन्द्र और देवेन्द्र भी केवल-कल्याणक का उत्सव मनाने के लिये प्रभू की सेवा में उपस्थित हुए।
सम्राट् भरत को जिस समय प्रभु के केवलज्ञान की सूचना मिली, उसी समय एक दूत ने आकर प्रायुधशाला में चक्र-रत्न उत्पन्न होने की शुभ सूचना भी दी।
___ प्राचार्य जिनसेन के अनुसार उसी समय उन्हें पुत्र-रत्न-लाभ की तीसरी शुभ सूचना भी प्राप्त हुई। १. (क) कल्पसूत्र १६६, पृ० ५८ (ख) आवश्यक नि० गाथा २६३ ।
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