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________________ ५२ जैन धर्म का मौलिक इतिहास [भगवान् का प्रथम पारणा ""तो सो पासायग्गे आगच्छमाणं पियामहं पस्समाणो चिंतेइ-कत्थ मण्णे मए एरिसी आगिई दिठ्ठपुव्व ? त्ति, मग्गणं करेमाणस तदावरण खग्रोवसमेण जाइसरणं जायं ।""ततो परमहरिसियो पडिलाहेइ सामि खोयरसेरणं । भयवं अच्छिद्दपारणी पडिगाहेइ। ततो देवेहि मुक्का पुप्फवुट्ठी, निवडिया वसुधारा, दुंदुहिनो समायामो, चेलुक्खेवो को, अहो दारणं ति आगासे सद्दो करो।" ___ इस गद्य का सार यह है कि प्रभु संवत्सर तक निराहार विचरण करते रहे और हस्तिनापुर आये । वहां उन्हें देखते ही श्रेयांसकुमार को ईहापोह करने पर जातिस्मरण ज्ञान हो गया और उसने भ० ऋषभदेव को इक्षुरस से पारणा करवाया । इस गद्य में संघदास गरिण ने पारणक की तिथि का उल्लेख नहीं किया है। “संवच्छरं विहरई" वर्ष भर तक विचरण करते रहे । “पत्तो य हत्यिरणारं" दूसरे दिन ही आ गये या कुछ दिनों पश्चात् ? इस शंका के लिये यहाँ अवकाश रख दिया है। एक संवत्सर का तप पूर्ण होते ही भ० ऋषभदेव हस्तिनापुर में पहुंचते तो निश्चित रूप से संघदास गरिण "पत्तो य बिइये दिवसे हत्थिरणारं" इस प्रकार स्पष्ट लिखते, पर ऐसा नहीं लिखने से शंका के लिये थोड़ा अवकाश रह ही गया है। यदि कतिपय दिवसानन्तर पहुँचे होते तो उस दशा में "पत्तो य क इवय दिवसारणंतरं हत्थिरणाउरं" - इस प्रकार का भी उल्लेख कर सकते थे। दिगम्बर परम्परा के मान्य ग्रन्थ हरिवंश पुराण का एतद्विषयक उल्लेख इस प्रकार है : षण्मासानशनस्यान्ते, संहृतप्रतिमास्थितिः । प्रतस्थे पदविग्यासः, क्षिति पल्लवयन्निव ।।१४२॥ तथा यथागमं नाथः, षण्मासानविषण्णधीः । प्रजाभिः पूज्यमानः सन्, विजहार महिं क्रमात् ।।१५६।। सम्प्राप्तोऽथ सदादानरिभरिभपुरं विभुः । दानप्रवृत्तिरत्रेति, सूचयद्भिरिवाचितम् ।।१५७।। स श्रेयानीक्षमाणस्तं, निमेषरहितेक्षणः । रूपमीदृक्षमद्राक्षं, क्वचित् प्रागित्यधान्मनः ।।१८०।। दीप्रेणाप्युपशान्तेन, स तद्रूपेण बोधितः । दशात्मेशभवान् बुद्धवा, पादावाश्रित्य मूच्छितः ।।१८१।। श्रीमतीवज्र जंघाभ्यां दनं दानं पुरा यथा । चारगाभ्यां स्वपुत्राभ्यां, संस्मृत्य जिनदर्शनात् ।।१८३।। भगवन् तिष्ठ तिष्ठेति, चोक्त्वा नीतो गृहान्तरे । उच्चः स प्रासने स्थाप्य, धोततपादपंकजः ।।१८४।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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