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लोकस्थिति, कलाज्ञान और लोक क०] भगवान् ऋषभदेव
४१ (६६) सुत्ताखेडं, नालियाखेडं, : सूत बनाने की, नली बनाने की, गेंद खेलने . वट्टखेडं, चम्मखेडं की, वस्तु के स्वभाव जानने की और चमड़ा
बनाने आदि की कलाएं। (७०) पत्तच्छेज्जं-कड़गच्छेज्जं : पत्र छेदन एवं कड़ग-वृक्षांग विशेष छेदने की
कला। (७१) संजीवं, निज्जीवं : संजीवन, निर्जीवन-कला। (७२) सउणरूयं
: पक्षी के शब्द से शुभाशुभ जानने की कला। पुरुषों के लिये कला-विज्ञान की शिक्षा देकर प्रभु ने महिलाओं के जीवन को उपयोगी व शिक्षासम्पन्न करना भी आवश्यक समझा।
अपनी पुत्री ब्राह्मी के माध्यम से उन्होंने लिपि-ज्ञान तो दिया ही, इसके साथ ही साथ महिला-गुणों के रूप में उनको ६४ कलाएं भी सिखलाई । वे ६४ कलाएं इस प्रकार हैं :
१. नृत्य-कला २३. वणिकावृद्धि ४४. शालि खण्डन २. औचित्य
२४. सुवर्ण सिद्धि ४५. कथाकथन ३. चित्र-कला २५. सुरभितैलकरण ४६. पुष्प ग्रथन ४. वादित्र-कला २६. लीलासंचरण ४७. वक्रोक्ति ५. मंत्र
२७. हय-गजपरीक्षण ४८. काव्यशक्ति ६. तन्त्र
२८. पुरुष-स्त्रीलक्षण ४६. स्फारविधिवेष ७. ज्ञान
२६. हेमरत्न भेद ५०. सर्वभाषा विशेष ८. विज्ञान
३०. अष्टादश लिपि- ५१. अभिधान ज्ञान ९. दम्भ
परिच्छेद ५२. भूषण-परिधान १०. जलस्तम्भ ३१. तत्काल बुद्धि ५३. भृत्योपचार ११. गीतमान
३२. वस्तु सिद्धि ५४. गृहाचार १२. तालमान ३३. काम विक्रिया ५५. व्याकरण १३. मेघवृष्टि ३४. वैद्यक क्रिया ५६. परनिराकरण १४. फलाकृष्टि ३५. कुम्भभ्रम ५७. रन्धन १५. आराम रोपण ३६. सारिश्रम ५८. केश बन्धन १६. प्राकार गोपन ३७. अंजनयोग
५६. वीणानाद १७. धर्म विचार ३८. चूर्णयोग ६०. वितण्डावाद १८. शकुनसार ३६. हस्तलाघव ६१. अङ्क विचार १६. क्रियाकल्प
४०. वचन-पाटव ६२. लोक व्यवहार २०. संस्कृत जल्प ४१. भोज्य विधि
६३. अन्त्याक्षरिका २१. प्रसाद नीति ४२. वाणिज्य विधि ६४. प्रश्न प्रहेलिका' २२. धर्म रीति ४३. मुखमण्डन
' जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, वक्षस्कार २, टीका पत्र १३६-२, १४०-१ । कल्पसूत्र सुबोधिका टीका
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