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४० जैन धर्म का मौलिक इतिहास
[लोककल्याण (३८) असिलक्खणं : तलवार के लक्षण जानने की कला। (३६) मरिणलक्खणं : मरिण-लक्षण जानने की कला। (४०) कागरिण लक्खरणं : काकिणी (चक्रवर्ती के रत्न विशेष) के
लक्षण जानने की कला। (४१) चम्मलक्खरणं : चर्म-लक्षण जानने की कला। (४२) चन्द लक्खरणं
: चन्द्र-लक्षण जानने की कला। (४३) सूर चरियं
: सूर्य प्रादि की गति जानने की कला । (४४) राह चरियं
: राह की गति जानने की कला। (४५) गह चरियं
: ग्रहों की गति जानने की कला । (४६) सोभागकरं
: सौभाग्य का ज्ञान । (४७) दोभागकरं
: दुर्भाग्य का ज्ञान । (४८) विज्जागयं
: रोहिणी, प्रज्ञप्ति आदि विद्या सम्बन्धी
ज्ञान। (४६) मंतगयं
: मन्त्र-साधना आदि का ज्ञान । (५०) रहस्सगयं
: गुप्त वस्तु को जानने का ज्ञान । (५१) समासं
: प्रत्येक वस्तु के वृत्त का ज्ञान । (५२) चारं
: सैन्य का प्रमाण आदि जानना । (५३) पडिवूहं
: प्रतिव्यूह रचने की कला । (५४) पडिचारं
: सेना को रणक्षेत्र में उतारने की कला।
: ..व्यूह रचने की कला। (५६) खंधावारमाणं
: सेना के पड़ाव का जमाव जानना। (५७) नगरमारणं
: नगर का प्रमाण जानने की कला । (५८) वत्थुमारणं
: वस्तु का परिमारण जानने की कला। (५९) खंधावार निवेसं : सेना का पड़ाव आदि कहां डालना इत्यादि
का परिज्ञान । (६०) वत्यु निवेसं
: प्रत्येक वस्तु के स्थापन करने की कला। (६१) नगर निवेसं
: नगर-
निर्माण का ज्ञान। (६२) ईसत्थं
: थोड़े को बहुत करने की कला। (६३) छरूप्पवायं
: तलवार आदि की मूठ बनाने की कला। (६४) आससिक्खं
: अश्व-शिक्षा। (६५) हत्थिसिक्खं : हस्ति-शिक्षा। (६६) धणु वेयं
: धनुर्वेद। (६७) हिरण्णपागं सुवनपागं : हिरण्यपाक, सुवर्णपाक
मणिपागं, घातुपागं मणिपाक और धातुपाक बनाने की कला । (६८) बाहुजुद्धं, दंडजुद्धं, : बाहुयुद्ध, दंडयुद्ध ।
मुट्ठिजुद्धं, अट्ठिजुद्धं, : मुष्टियुद्ध, यष्टियुद्ध जुद्ध, निजुद्ध, जुद्धाईजुद्ध : युद्ध, नियुद्ध, युद्धातियुद्ध करने की कला ।
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