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________________ यापनीय संघ के गण और अन्वय : ५५ द्राविड़ संघ और यापनीय संघ दर्शनसार के कर्ता देवसेन के अनुसार पूज्यपाद के शिष्य वज्रनन्दी ने विक्रमसंवत् ५२६ अर्थात् ई० सन् ४६९ में दक्षिण मथुरा में द्राविड़ संघ की स्थापना की। दर्शनसार में प्रस्तुत विवरण के अनुसार जब इन्हें अप्रासुक चने खाने से वर्जित किया गया, तो उन्होंने विद्रोह करके एक नये संघ की स्थापना कर दी । इनका कहना था कि बीजों में जीव नहीं होता है, मुनियों के लिए खड़े होकर खाने (स्थित-भोजन) का नियम नहीं है । यह संघ सावध अर्थात् भूमि, जल, बीज आदि सचित्त है-इस अवधारणा को नहीं मानता था। अतः इनके अनुसार कृषि आदि करवाना तथा शीतल जल से स्नान करना भी मुनि के लिए वर्जित नहीं है । प्रारम्भिक अभिलेखों में कुन्दकुन्दान्वय और मूलसंघ के साथ द्राविड़गण रूप में इसका उल्लेख देखकर डा० गलाबचन्द्र चौधरी ने यह अनुमान लगाया कि द्राविड़ संघ प्रारम्भ में मूलसंघ और कुन्दकुन्दान्वय से सम्बन्धित रहा होगा, किन्तु आगे चलकर यह यापनीयों के नन्दीसंघ में द्राविढ़गण के रूप में समाहित हुआ होगा। परवर्तीकाल में यह द्राविड़संघ इतना प्रभावशाली हो गया कि इसने अपने को संघ का रूप दे दिया और यापनीय नन्दीसंघ को नन्दीगण के रूप में अपने में समाहित कर लिया। यापनीयों के समान ही द्राविड़संघ को भी जैनाभास कहा गया है। इससे लगता है कि यापनीय संघ और द्राविड़संघ कुछ मान्यताओं में एक दूसरे के निकट ही थे। यापनीयों के नन्दीसंघ का नन्दीगण के रूप में द्राविड़संघ में समाविष्ट होना भी इस तथ्य की पुष्टि करता है। यद्यपि १. सिरिपुज्जपादसीसो दाविडसंघस्स कारगो दुवो। णामेण वज्जणंदी पाहुडवेदी महासत्थो॥ अप्पासुयचणयाणं भक्खणदो वज्जिदो मुणिदेहि । परिरइयं विवरीयं विसेसियं वग्गणं चोज्जं । बीएसु णत्थि जीवो उब्भसण त्थि मुणिंदाणं । सावज्ज ण हु मण्णइ ण गणइ गिहकप्पियं अढें ॥ कच्छं खेत्तं वसहि कारिऊण जीवंतो। ण्हतो सीयलनीरे पावं परं च संचेदि ।। पंचसए छब्बीसे विक्कमरायस्य मरणपत्तस्स । दक्षिणमहुरा जादो दाविडसंघो महामोहो ।। -दर्शनसार गाथा २४-४८ तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002068
Book TitleJain Dharma ka Yapniya Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1996
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Religion
File Size10 MB
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