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________________ यावनीय संघ के गण और अन्वय : ४१ दिवाकर मुनि एवं उनके शिष्य मन्दिरदेव का उल्लेख है। इस अभिलेख में गण के कटकाभरण जिनालय का भी उल्लेख हआ है। इसी प्रकार प्रो० पी० बी० देसाई ने अपने ग्रन्थ Jainism in South India में ११२४ ईस्वी के सेडम के अभिलेख के आधार पर मड़वगण के प्रभाचन्द्र विद्य का उल्लेख किया है। इसी प्रकार असिकेरे (मैसूर) के एक अन्य अभिलेख में मडुवगण यापनीय संघ के कुमारकीति का उल्लेख हुआ है। इस प्रकार हम देखते हैं कि कोटिमडुवगण के उल्लेख ई० सन् ९४५ से प्रारम्भ होकर १२वीं शती के मध्य तक अर्थात् दो सौ वर्ष तक मिलते हैं। इसके पश्चात् इस संघ का कोई अन्य अभिलेख उपलब्ध नहीं होता है। बन्दियूरगण (वाडियूरगण) ___ बन्दियूरगण के तीन अभिलेख प्राप्त होते हैं। ये तीनों अभिलेख ११-१२वीं शताब्दी के हैं। धर्मपूरी, जिला बीड़ (महाराष्ट्र) से लगभग ११वीं सदी के एक अभिलेख में यापनीय संघ बन्दियूरगण के महावीर पण्डित का उल्लेख है। इसी प्रकार बेंगलि (गुलबर्गा) के एक अभिलेख में यापनीयसंघ के वाडियूरगण के नागदेव सैद्धान्तिक के शिष्य ब्रह्मदेव का उल्लेख है।५ तीसरे वारंगल के एक अभिलेख में इसी गण के गुणचन्द्र महामुनि के स्वर्गवास का उल्लेख है। इस अभिलेख का काल सन् ११३१ ई० बताया गया है। इसके पश्चात् इस गण का कोई अभिलेख प्राप्त नहीं हो सका है। इस प्रकार यह गण लगभग एक शताब्दी तक ही जोवित रहा। पापनीय संघ के अन्य गण ऊपर हमने जिन गणों का उल्लेख किया है उनमें कनकोपल सम्भूत वृक्ष मूलगण और श्रीमूल मूलगण को छोड़कर शेष सभी गणों से सम्बन्धित १. जैनशिलालेखसंग्रह भाग, २, ले० क्र० १४३ २. Jainism in South India P. B. Desai, p. 403 3. Journal of Karnataka University, Vol. 10. (1965) p, 159, ४. जनशिलालेखसंग्रह, भाग ५ ले० क्र० ७० ५. वही, भाग ५, ले० क्र० १२५ ६. वही, भाग ५, ले० क्र० ८६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002068
Book TitleJain Dharma ka Yapniya Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1996
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Religion
File Size10 MB
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