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________________ यापनीय संघ के गण और अन्बय : ३७ यह सम्भावना व्यक्त की है कि इस काल में यह गण यापनीय संघ से अलग हो गया था और मूलसंघ द्वारा आत्मसात् कर लिया गया था । ' किन्तु हमें उनका मन्तव्य इसलिए समुचित नहीं लगता है, क्योंकि इस काल के पूर्व एवं पश्चात् के पुन्नागवृश्चमूलगण के अनेक अन्य अभिलेख भी मिलते हैं, जिनमें स्पष्ट रूप से यापनीय संघ के साथ 'पुन्नागवृक्षमूलगण' का उल्लेख हुआ है । इस अभिलेख में १२ वर्ष पूर्व दोणि, धारवाड़ के एक अभिलेख में यापनीय संघ मूलवृक्षगण के मुनिचन्द्र, त्रैविद्यभट्टारक के शिष्य पं० चारुकीर्ति का स्पष्ट रूप से उल्लेख प्राप्त है । अतः यह कल्पना समुचित नहीं लगती कि यापनीय संघ का पुन्नागवृक्षमूलगण मूलसंघ में समाहित हो गया हो । एकसाम्ब बेलगाँव से प्राप्त सन् १९५५ ई० के एक अभिलेख में यापनीय संघ पुन्नागवृक्ष मूलगण के विजयकीर्ति को सेनापति कालन द्वारा नेमिनाथ वसति के लिए भूमिदान दिये जाने का उल्लेख है । इस अभिलेख में विजयकोति की गुरु परम्परा के रूप में मुनिचन्द्र, विजयकीर्ति 'प्रथम', कुमार कीर्ति और त्रैविद्यकीर्ति के उल्लेख हैं । 3 यापनीय संघ के पुन्नागवृक्षमूलगण का अन्तिम अभिलेख ई० सन् १३९४ कगवाड़, जिला बेलगांव में उपलब्ध हुआ है । इसमें पुन्नागवृक्षमूलगण के नेमिचन्द्र, धर्मकीर्ति और नागचन्द्र के नामों का उल्लेख है । इस प्रकार हम देखते हैं कि पुन्नागवृक्षमूलगण यापनीय सम्प्रदाय में सबसे लम्बी अवधि तक जीवित रहनेवाला गण है और इसी गण के सर्वाधिक अभिलेख भी मिलते हैं । कण्डूर-काणूरगण यापनीय संघ का एक अन्य महत्त्वपूर्ण गण कण्डूरगण या काणूरगण के नाम से जाना जाता है । इस गण का सर्वप्रथम उल्लेख ई० सन् ९८० ई० के सौंदत्ति के अभिलेख में मिलता है । इस अभिलेख में स्पष्टरूप से यापनीय संघ का नाम निर्दिष्ट है । अतः यह गण यापनीय संघ का ही गण था । इस अभिलेख में इस गण के आचार्यों के नाम इस प्रकार १. जैनशिलालेखसंग्रह, भाग ३, भूमिका, पृ० २९ २. वही भाग ४, ले० क्र० १६८ 1 ३. वही भाग ४, ले० क्र० २६० , ४. वही, भाग २, ले० क्र० १६० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002068
Book TitleJain Dharma ka Yapniya Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1996
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Religion
File Size10 MB
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