________________
जैनधर्म में अचेलकत्व और सचेलकत्व का प्रश्न : ४४३ करता है कि सामायिक चारित्र से दीक्षित होते समय एक वस्त्र ग्रहण करने की परम्परा रही होगी।
निष्कर्ष यह है कि महावीर की साधना का प्रारम्भ सचेलता से हुआ किन्तु उसकी परिनिष्पत्ति अचेलता में हुई । महावीर की दृष्टि में सचेलता अणुधर्म था और अचेलता मुख्य धर्म था। महावीर द्वारा वस्त्र ग्रहण करने में उनके कूल-धर्म अर्थात पापित्य परम्परा का प्रभाव हो सकता है किन्तु पूर्ण अचेलता का उनका निर्णय या तो स्वतः स्फूर्त था या फिर आजीवक परम्परा का प्रभाव । यह सत्य है कि महावीर पापित्य परम्परा से प्रभावित रहे हैं और उन्होंने पापित्य परम्परा के दार्शनिक सिद्धान्तों को ग्रहण भी किया है, किन्तु वैचारिक दृष्टि से पापित्यों के निकट होते हुए भी आचार की दृष्टि से वे उनसे संतुष्ट नहीं थे। पार्वापत्यों के शिथिलाचार के उल्लेख और उसकी समालोचना जैनधर्म की सचेल और अचेल दोनों परम्पराओं के साहित्य में मिलती है।' यही कारण था कि महावीर ने पार्वापत्यों को आचार व्यवस्था में व्यापक सुधार किये। सम्भव है कि अचेलता के सम्बन्ध में वे आजीवकों से प्रभावित हुए हों। हर्मन जैकोबी आदि पाश्चात्य विद्वानों ने भी इस सन्दर्भ में महावीर पर आजीवकों का प्रभाव होने की सम्भावना को स्वीकार किया है।
हमारे कुछ दिगम्बर विद्वान् यह मत रखते हैं कि महावीर की अचेलता से प्रभावित होकर आजीवकों ने अचेलता | नग्नता नग्नता को स्वीकार किया, किन्तु यह उनकी भ्रान्ति है और ऐतिहासिक दृष्टि से सत्य नहीं है। चाहे गोशालक महावीर के शिष्य के रूप में उनके साथ लगभग छः वर्ष तक रहा हो, किन्तु न तो गोशालक से प्रभावित होकर महावीर नग्न हुए और न महावीर की नग्नता का प्रभाव गोशालक के माध्यम से आजीवकों पर ही पड़ा, क्योंकि गोशालक महावीर के पास उनके दूसरे नालन्दा चातुर्मास के मध्य पहुँचा था, जबकि महावीर
(ब) बावीसं तित्थयरा समाइयसंजम उव इसति ।
छेओवट्ठावणयं पुण वयंति उसभो य वीरो य । ___ आवश्यकनियुक्ति, १२६० १. ( अ ) एवमेगे उ पासत्था । सूत्रकृतांग, १।३।४।९
( ब ) पासत्थादीपणयं णिच्चं बज्जेह सव्वधा तुम्हें । हंदि हु मेलणदोसेण होइ पुरिसस्स तम्मयदा । -भगवतीआराधना, ३४१
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org