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४३४ : जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय दोनों ही दृष्टिकोण साम्प्रदायिक अभिनिवेश से युक्त हैं । श्वेताम्बर और यापनीय परम्परा के अपेक्षाकृत प्राचीन स्तर के ग्रन्थों में स्पष्ट रूप से यह उल्लेख मिलता है कि प्रथम तीर्थंकर ऋषभ और अन्तिम तीर्थंकर महावीर की आचार व्यवस्था मध्यवर्ती बावीस तीर्थंकरों की आचार व्यवस्था से भिन्न थी।' यापनीय ग्रन्थ मुलाचार प्रतिक्रमण आदि के सन्दर्भ में उनकी इस भिन्नता का तो उल्लेख करता है किन्तु मध्यवर्ती तीर्थंकर सचेल धर्म के प्रतिपादक थे, यह नहीं कहता है। जबकि श्वेताम्बर आगम उत्तराध्ययन में स्पष्ट रूप से यह भी उल्लेख है कि अन्तिम तीर्थंकर महावीर ने अचेल धर्म का प्रतिपादन किया, जबकि तेवीसवें तीर्थकर पार्श्वनाथ ने राचेलधर्म का प्रतिपादन किया था। यहाँ यह भी ज्ञातव्य है कि बृहत्कल्पभाष्य में प्रथम और अन्तिम तीर्थंकर को अचेल धर्म का और मध्यवर्ती बावीस तीर्थंकरों को सचेल-अचेल धर्म का प्रतिपादक कहा गया है । यद्यपि उत्तराध्ययन स्पष्टतया पाश्व के धर्म को “सचेल" अथवा सांतरोत्तर ही कहता है, सचेल-अचेल नहीं। मध्यवर्ती तीर्थंकरों के शासन में भी अचेल मुनि होते थे-बृहत्कल्पभाष्य को यह स्वीकारोक्ति उसकी सम्प्रदाय निरपेक्षता की ही सूचक है। यद्यपि दिगम्बर और यापनीय परम्परा श्वेताम्बर मान्य आगमों एवं आगमिक व्याख्याओं के इन कथनों को मान्य नहीं करते हैं, किन्तु हमें श्वेताम्बर आगमों के इन कथनों में सत्यता परिलक्षित होती है, क्योंकि अन्य ऐतिहासिक स्रोतों से भी इन कथनों की बहुत कुछ पुष्टि हो जाती है।
यहाँ हमारा उद्देश्य सम्प्रदायगत मान्यताओं से ऊपर उठकर मात्र प्राचीन ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर ही इस समस्या पर विचार करना है। अतः इस परिचर्चा में हम परवर्ती अर्थात् साम्प्रदायिक मान्यताओं के दृढीभूत होने के बाद के ग्रन्थों को आधार नहीं बना रहे हैं। ____महावीर से पूर्ववर्ती तीर्थंकरों में मात्र ऋषभ, अरिष्टनेमि और पार्श्व के कथानक ही ऐसे हैं, जो ऐतिहासिक महत्त्व के हैं। यद्यपि इनमें भी १. (अ) आवश्यकनियुक्ति, गाथा-१२५८ ।
(ब) वही, गाथा-१२६० । २. अचेलगो य जो धम्मो जो इमोसंतरुत्तरो।
देसिओ वद्धमाणेण पासेण य महाजसा ॥ उत्तराध्ययन, २३/२९ ३. वही, २३/२४ ।
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