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जैनधर्म में अचेलकत्व और सचेलकत्व का प्रश्न : ४३३ (जैन) परम्परा के हैं-यह कहना कठिन है। यद्यपि अनेक हिन्दू पुराणों में नग्न जैन श्रमणों के उल्लेख हैं, किन्तु अधिकांश हिन्दू पुराण तो विक्रम की पांचवीं-छठी शती या उसके भी बाद के हैं अतः उनमें उपलब्ध साक्ष्य अधिक महत्त्व के नहीं हैं । दूसरे उनमें सवस्त्र और निर्वस्त्र दोनों प्रकार के जैन मुनियों के उल्लेख मिल जाते हैं, अतः उन्हें इस परिचर्चा का भाधार नहीं बनाया जा सकता। ___इस दृष्टि से पालित्रिपिटक के उल्लेख अधिक महत्त्वपूर्ण हैं और किसी सीमा तक सत्य के निकट भी प्रतीत होते हैं । इस परिचर्चा के हेतु जो आधारभूत प्रामाणिक सामग्री हमें उपलब्ध होती है, वह है मथुरा से उपलब्ध प्राचीन जैन मूर्तियाँ और उनके अभिलेख । प्रथम तो यह सब सामग्री ईसा की प्रथम-द्वितीय शताब्दी की है। दूसरे इसमें किसी भी प्रकार के प्रक्षेप आदि की सम्भावना भी नहीं है। अतः यह प्राचीन भी है और प्रामाणिक भी क्योंकि इसकी पुष्टि अन्य साहित्यिक स्रोतों से भी हो जाती है । अतः इस परिचर्चा में हमने सर्वाधिक उपयोग इसी सामग्री का किया है। महावीर के पूर्व निर्ग्रन्थ संघ में वस्त्र की स्थिति
जैन अनुश्रुति के अनुसार इस अवसर्पिणीकाल में भगवान महावीर से पूर्व तेवीस तीर्थकर हो चुके थे। अतः प्रथम विवेच्य बिन्दु तो यही है कि अचेलता के सम्बन्ध में इन पूर्ववर्ती तीर्थंकरों की क्या मान्यताएँ थीं? यद्यपि सम्प्रदाय भेद स्थिर हो जाने के पश्चात् निर्मित ग्रन्थों में जहाँ दिगम्बर ग्रन्थ एक मत से यह उद्घोष करते हैं कि सभी जिन अचेल होकर ही दीक्षित होते हैं , वहाँ श्वेताम्बर ग्रन्थ यह कहते हैं कि सभी जिन एक देव-दुष्य वस्त्र लेकर ही दीक्षित होते हैं ।२ मेरी दृष्टि में ये १. णवि सिज्झइ वत्थधरो जिणसासणे जइयि होइ तित्थयरो।
णम्गो विमोक्ख मग्गो सेसाउभ्मग्गया सन्वे ।। सूत्रप्राभृत, २३ । २. (अ) से बेमि जे य अईया जे य पडुप्पन्ना जे य आगमेस्सा अरहंता भगवन्तो
जे य पव्वयन्ति जे उन पव्वइस्सन्ति सम्वे ते सोवही धम्मो देसिअव्वोत्ति कटु तिथ्यधम्मथाए एसाऽणुधम्मिगति एवं देवसूसमायाए पव्वहंसु वा पव्वयंति वा पव्वइसन्ति व । आचारांग, १/९/१-१ (शीलांक टीका ) भाग १, पृ० २७३, श्री
सिद्धचक्र साहित्य प्रचारक समिति, सूरत-१९३५ ।। (ब) सन्वेऽवि एगदूसेण निग्गया जिनवरा चउवीसं । आवश्यकनियुख्ति,
२२७, श्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला-लाखावावल शांतिपुरी ( सौराष्ट्र ), १९८९ ।
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