________________
यापनीय संघ को विशिष्ट मान्यताएं : ३८९ होंगे। यापनीय ग्रन्थ मुलाचार के मलपाठ में शौचोपकरण के रूप में पात्र ( कमण्डल ) का उल्लेख भी मुझे नहीं मिला, यद्यपि टीकाकार वसुनन्दी ने इसका उल्लेख किया है, जबकि संयमोपकरण के रूप में पिच्छो रखे जाने का स्पष्ट उल्लेख मलाचार के मलपाठ में है। परवर्ती श्वेताम्बर साहित्य में इनके द्वारा प्रतिलेखन, (धम्मकुच्चग) कमण्डलु, सादड़ी (चटाई) एवं आसन रखे जाने की सूचना उपलब्ध होती है। ___ आचारांगचूणि ( ७वीं शती ) में यापनीयों | बोटिको की उपधि के सम्बन्ध में स्पष्ट रूप से उल्लेख उपलब्ध होता। उसमें कहा गया है 'तेण जे इमे सरीरमत्तपरिग्गहा, पाणिपूडभोइणो ते णाम अपरिग्गहा तं जहा उडुड बोडिया सारक्खमादि असणादो वा तत्थेव भुजति जहा बोडिय।' ""जहा बोडिएण धम्मकुच्चगकडसागरादि सेच्छया गहिया- अर्थात् बोटिक शरीर मात्र परिग्रह धारी पाणिपुट भोजी थे, उन्होंने स्वेच्छा से धर्म-कूर्चक, कटासन और सादडी को ग्रहण किया। इस प्रकार आचारांगचूणि के अनुसार बोटिक / यापनीय धर्मकूर्चक अर्थात् प्रतिलेखन या पिच्छी, कट अर्थात् आसन और सादडी अर्थात् चटाई ये तोन उपकरण तो रखते ही थे, किन्तु आचारांगचूर्णि के मूलपाठ में इनके आगे 'आदि' शब्द का प्रयोग है । अतः सम्भावना यही है कि इसके अतिरिक्त कमण्डलु आदि भी वे रखते रहे होंगे, किन्तु उसका प्रयोग मात्र शौच के लिए होता रहा होगा क्याकि इसो ग्रन्थ में उन्हें पाणीतलभोजी भी कहा गया है । ___. आचारांगचूर्णि के पश्चात् शोलाङ्क की आचारांगटोका में बोटिकों के उपकरणों की सूची के प्रसंग में कुण्डिका, तट्टिका, लम्बणिका,अश्वावालाधिवालादि का उल्लेख हुआ है। यहाँ कुण्डिका-कमण्डलु को तट्टिका आसन की और लम्बणिका चटाई की और अश्ववालाधिवाल पिच्छी या प्रतिलेखन के सूचक माने जा सकते हैं। श्वेताम्बर परम्परा में स्पष्टरूप से यापनीय शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग हरिभद्रसूरि के टीका ग्रंथ ललितविस्तरा ( आठवीं शती) में उपलब्ध है। इस ग्रन्थ में यापनियों के स्त्रीमुक्ति के समर्थन के सम्बन्ध में क्या तर्क थे, इसका उल्लेख हुआ है।
१. मूलाचार, समयसाराधिकार ( ज्ञानपीठ ) ९१२-९१६ एवं ९१६ की टीका
-कुण्डिकादिग्रहण । २. आचारांगचूणि, पृ० १६९ ३. वही, पृ० ८२ ४. आचारोग शीलांकवृत्ति, पृ० १२२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org