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- १४ : जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय
वली में भी है । [ निह्नव वे हैं जो सैद्धान्तिक या दार्शनिक मान्यताओं के सन्दर्भ में मतभेद रखते हैं, किन्तु आचार और वेश वही रखते हैं । ] इन सात निह्नवों में कहीं भी बोटिक ( बोडिय ), जिन्हें सामान्यतया दिगम्बर मान लिया जाता है, किन्तु वस्तुतः जो यापनीय हैं, का उल्लेख नहीं है । बोटिक सम्प्रदाय का सर्वप्रथम उल्लेख आवश्यक मूलभाष्य की गाथा १४५ से १४८ तक में मिलता है ।' ये गाथायें हरिभद्र की आवश्यकनियुक्ति टीका में मूल गाथा ७८३ के पश्चात् संकलित हैं । इस प्रकार श्वेताम्बर आगमिक साहित्य आवश्यक मूलभाष्य की रचना के पूर्व तक बोटिक, यापनीय एवं दिगम्बर परम्पराओं के सम्बन्ध में हमें कोई सूचना : नहीं देता । आश्चर्य यह है कि स्त्रीमुक्ति एवं केवलीकवलाहार का निषेध
१.
( ब ) बहुरय जमालिपं भवा जीवपएसस य तीसगुत्ताओ । अव्वत्ताऽऽसाढाओ
सामुच्छेयाssसमित्ताओ ।। ७७९ ।। गंगाओ दोकरिया छलुगा तेरासियाण उप्पत्ती । थेरा य गोठ मात्यि पुठुमबद्धं परूविति ।। ७८० ।। साथी उसन्नपुरं सेयविया मिहिल उल्लुगतीरं । पुरिमंतरंज दसपुर रथवीरपुरं च नगराई ॥ ७८१ ॥ चोट्स सोथस वासा चोइसवीसुत्तरां य दोण्णि सया । अट्ठावीसा य दुवे पंचेव सया उ चोयाला ! ७८२ ।। सया चुलसीया छच्चेव सया ण्वोत्तरा होंति । णाणुप्पत्तीय दुवे उप्पण्णा णित्वुए सेसा ॥ ७८३ ॥
- आवश्यक निर्युक्ति
समुप्पण्णा ॥ अज्जकण्हे |
छव्वाससयाइं नवुत्तराइ तइया सिद्धिगयस्स वीरस्स । तो बोडियाण दिट्ठी रहवीरपुरे रवीरपुरं नयरं जीवगमुज्जाण सिव भइस्सर्वा हमि य पूच्छा थेराण कहणा य ॥ ऊहा पण्णत्त बोडियसिवभू इउत्तराहि इमं । मिच्छादंसणमिणमो रहवीरपुरे समुप्पण्णं ॥ बोडियसिवईओ बोडियलिंगस्स होइ उप्पत्ती ॥ कोडिण्ण- कोद्रवीरा
परंपराफासमुप्पण्णा ।
- आवश्यक मूलभाष्य १४५ १४८, उद्धृत आवश्यकनियुक्ति
हरिभद्रीयवृत्ति, पृ० २१५
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