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- १२ : जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय
कर रही थी।' पुनः भोजपुरी और अवधी में आज भी बोरना या बूड़ना शब्द डूबने के अर्थ में प्रयुक्त होते हैं । व्यञ्जना से इसका अर्थ भी पतित . या गिरा हुआ हो सकता है ।
'बोडिय' शब्द की इन विभिन्न व्याख्याओं में मुझे प्रो० ढाकी की व्याख्या अधिक युक्तिसंगत लगती है । क्योंकि इस व्याख्या से यापनीय और बोटिक शब्द पर्यायवाची भी बन जाते हैं । यदि यापनीय का अर्थ तिरस्कृत या निष्कासित और बोटिक का अर्थ भ्रष्ट या पतित है, तो दोनों पर्यायवाची ही सिद्ध होते हैं । किन्तु ऐसी स्थिति में हमें यह स्मरण रखना होगा कि ये दोनों नाम उन्हें साम्प्रदायिक दुरभिनिवेश -वश ही दिये गये हैं । जहाँ श्वेताम्बरों ने उन्हें बोडिय (बोटिक = भ्रष्ट ) कहा, वहीं दिगम्बरों ने उन्हें यापनीय ( तिरस्कृत या निष्कासित ) कहा । यापनीयों के लिए बोटिक शब्द का प्रयोग श्वेताम्बर परंपरा में केवल आगमिक व्याख्या ग्रन्थों तक ही सीमित रहा है; इन ग्रन्थों के अतिरिक्त इस शब्द का प्रयोग अन्यत्र कहीं भी उपलब्ध नहीं होता है । यह संभव है कि आगे चलकर इस वर्ग ने स्वयं अपने लिए 'यापनोय' शब्द को स्वीकार कर लिया होगा, क्योंकि यापनीय शब्द की व्याख्या प्रशस्त अर्थ में भी संभव है । अभिलेखों में भी ये अपने को 'यापनीय' के रूप में ही अंकित करवाते थे ।
यापनीय संघ की उत्पत्ति
यापनाय सम्प्रदाय कब उत्पन्न हुआ ? यह प्रश्न विचारणीय है । भगवान् महावोर का धर्म संघ कब और किस प्रकार विभाजित होता गया, इसके प्राचीनतम उल्लेख हमें कल्पसूत्र और नन्दीसूत्र की स्थविरावलियों में मिलता है । ये स्थविरावलियाँ स्पष्ट रूप से हमें यह तो बताती हैं कि महावीर का धर्मसंघ विभिन्न गणों में विभाजित हुआ और ये गण शाखाओं में, शाखायें कुल में और कुल सम्भोगों में विभाजित हुए, किन्तु नन्दी सूत्र और कल्पसूत्र की स्थविरावलियों में ऐसा कोई उल्लेख उपलब्ध नहीं होता, जिससे महावीर के धर्मसंघ के यापनीय, श्वेताम्बर और
१. (अ) प्रो० एम० ए० ढाकी से प्राप्त व्यक्तिगत सूचना पर आधारित । (ब) देखिए बोटवु - हिन्दी - गुजराती कोश पृ० ३४८ ।
२. कल्पसूत्र स्थविरावली २०७-२२४ ।
३. नन्दी सूत्र (मधुकर मुनि) गाथा २५-५० ।
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