________________
विषय-प्रवेश : ११
आवश्यकटोका में शिवरहते थे, भिक्षादि प्रसंग प्रवेश नहीं करते थे और वे
अर्थं वाटिका या उद्यान में रहने वाला है । भूति की कथा से स्पष्ट है कि बोटिक मुनि नग्न को छोड़कर सामान्यतया ग्राम या नगर में नगर के बाहर उद्यानों या वाटिकाओं में ही निवास करते थे ।
उल्लेख मिलते हैं | 3 सेअअड > सेवड़ा बाडिय > बोडिय
अतः सम्भावना यह है कि वाटिका में निवास के कारण वे वाडिय या बाडिय कहे जाते होंगे । सम्भवतः आगे चलकर वाडिय शब्द का परिवर्तित रूप 'बोडिय' हो गया हो । कल्पसूत्र में वेसवाडिय (वैश्य-वाटिक) उडुवाडिय ( ऋतुवाटिक) आदि गणों के जिस प्रकार श्वेतपट प्राकृत में सेतपट > सेअपड > हो गया, उसी प्रकार सम्भवतः वाटिक> वाडिय> हो गया हो । आज भी मालव प्रदेश में उद्यान को बाड़ी कहा जाता है । इसी प्रसंग में मुझे मालवी बोलो में प्रयुक्त 'बोडा' शब्द का भी स्मरण हो जाता है । गुजरात एवं मालवी में केशरहित मस्तक वाले व्यक्ति को 'बोडा' कहा जाता | अतः सम्भावना यह भी हो सकती है कि लुंचित केश या केशरहित सिर वालों को 'बोडिय' कहा गया हो । शब्दों के रूप परिवर्तन की ये व्याख्याएँ मैंने अपनी बुद्धयनुसार करने की चेष्टा की है । भाषाशास्त्र के विद्वानों से अपेक्षा है कि इस सम्बन्ध में विशेष प्रकाश डालें ।
प्रो० एम० ए० ढाकी बोटिक की मेरी इस व्याख्या से सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि 'बोटवु' शब्द आज भी गुजराती भ्रष्ट या अपवित्र के अर्थ में प्रयुक्त होता है । सम्भवतः यह देशीय शब्द हो और उस युग में भी इसी अर्थ में प्रयुक्त होता रहा हो । अतः श्वेताम्बरों ने उन्हें साम्प्रदायिक अभिनिवेशवश 'बोडिय' अर्थात् भ्रष्ट या पतित कहा होगा । क्योंकि श्वेताम्बर परंपरा उनके लिए मिथ्यादृष्टि, प्रभूततरविसंवादो, सर्वविसंवादी और सर्वापलापी जैसे अनादरसूचक शब्दों का प्रयोग
१. आवश्यक टीका ( हरिभद्र कृत) पृ० ४२३ ।
२. अथेरेहिंतो भद्दजसेहितो भारद्वायगोत्रोहितो एत्थ णं उडुवाडियगणे नामं गणे निग्गए । कल्पसूत्र ( प्राकृतभारती, जयपुर, संस्करण) सूत्र २१३ । ब - थेरेहितो णं कामिड् ढिहितो कुंडलिसगोत्तेहितो एत्थ णं वेसवाडियगणे नाम गणे निग्गये । कल्पसूत्र, वही सूत्र - १२४ ॥
३. देखिये बोडु - हिन्दी - गुजराती कोश ( अहमदाबाद - १९६१) पृ० ३४८ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org