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सिद्धान्त विद्याधर और उनके सम्मतिसूत्र की परम्परा : २३१
मत का उल्लेख किया है । पूज्यपाद देवनन्दी का काल विक्रम की पाँचवींछठीं शती माना गया है। इससे भी वे विक्रम संवत् की छठीं शताब्दी के पूर्व हुए, यह तो सुनिश्चित हो जाता है ।
मथुरा के अभिलेखों में दो अभिलेख ऐसे हैं, जिनमें आर्य वृद्धहस्ति का उल्लेख है । संयोग से इन दोनों अभिलेखों में काल भी दिया हुआ है । ये अभिलेख हुविष्क के काल के हैं । इनमें प्रथम में वर्ष ६० का और द्वितीय में वर्ष ७९ का उल्लेख हैं । यदि हम इसे शक संवत् मानें तो तदनुसार दूसरे अभिलेख का काल लगभग विक्रम संवत् २१५ होगा । ये लेख उनकी युवावस्था के हों तो आचार्य वृद्धहस्ति का काल विक्रम की तीसरी शताब्दी के उत्तरार्धं तक माना जा सकता है । इस दृष्टि से सिद्धसेन का काल विक्रम की तीसरी शताब्दी के उत्तरार्ध से चौथी शताब्दी के पूर्वार्ध के बीच माना जा सकता है ।
इस समग्र चर्चा से इतना निश्चित होता है कि सिद्धसेन दिवाकर के काल की सीमा रेखा विक्रम संवत् की तृतीय शताब्दी के उत्तरार्ध से लेकर विक्रम संवत् की पंचम शताब्दी के पूर्वार्ध के वीच ही कहीं निश्चित होगी । पं० सुखलाल जी, पं० बेचरदास जी ने उनका काल चतुर्थ पंचम शताब्दी निश्चित किया है । प्रो० ढाकी ने भी उन्हें पाँचवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में माना है, किन्तु इस मान्यता को उपर्युक्त अभिलेखों के आलोक में तथा चन्द्रगुप्त द्वितीय से समकालिकता की दृष्टि से थोड़ा पीछे लाया जा सकता है । यदि आर्य वृद्धहस्ति ही वृद्धवादी हैं और सिद्धसेन उनके शिष्य हैं तो सिद्धसेन का काल विक्रम की तृतीय शती के उत्तरार्ध से चतुर्थ शताब्दी के पूर्वार्ध के बीच ही मानना होगा । कुछ प्रबन्धों से उन्हें आर्य धर्म का शिष्य भी कहा गया है । आर्य धर्म का उल्लेख कल्पसूत्र स्थविरावली में है । वे आर्य वृद्ध के बाद तीसरे क्रम पर उल्लेखित है । इसी स्थविरावली में एक आर्य धर्म देवधिगणिक्षमाश्रमण के पूर्व भी उल्लेखित हैं । यदि हम सिद्धसेन के सन्मति प्रकरण और तत्त्वार्थसूत्र की तुलना करें तो दोनों में कुछ समानता परिलक्षित होती है । विशेष रूप से तत्त्वार्थ सूत्र में अनेकान्त दृष्टि को व्याख्यायित करने के लिए अर्पित और अनर्पित जैसे शब्दों का प्रयोग हुआ है । इन शब्दों का प्रयोग सन्मतितर्क ( १ / ४२ ) में भी पाया जाता है । मेरी दृष्टि में सिद्धसेन उमास्वाति से किंचित् परवर्ती हो सकते हैं ।
इस चर्चा से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि सिद्धसेन विक्रम की चौथी शताब्दी में ही हुए हैं। यदि हम साम्प्रदायिक विभेद के काल
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