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________________ ८ : जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय यापनीय और बोटिक यापनीयों के लिए श्वेताम्बर परम्परा में लगभग ८वीं शताब्दी तक 'बोडिय' (बोटिक ) शब्द का प्रयोग होता रहा है ।" मेरी जानकारी के अनुसार श्वेताम्बर परम्परा में सबसे पहले हरिभद्र के ग्रन्थों में यापनीय शब्द का प्रयोग हुआ है । फिर भी यापनीय और बोटिक एक ही हैंऐसा स्पष्ट उल्लेख श्वे ० साहित्य में हमें कहीं नहीं मिलता है । हरिभद्र भिन्न-भिन्न प्रसंगों में इन दोनों शब्दों की व्याख्या तो करते हैं, किन्तु ये दोनों शब्द पर्यायवाची हैं ऐसा स्पष्ट उल्लेख वे भी नहीं करते । यद्यपि श्वे० साहित्य में 'बोटिक' और 'यापनीय' सम्प्रदाय के सम्बन्ध में जो विवरण प्रस्तुत किया गया है, उसे देखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि दोनों शब्द एक ही परम्परा को सूचित करते हैं । ० आचार्यों ने बोटिकों को जो दिगम्बर मान लिया है, वह एक भ्रान्ति है | श्वेताम्बर साहित्य में उल्लिखित 'बोटिक' दिगम्बर नहीं हैं', इस तथ्य को पं० दलसुख भाई मालवणिया ने अपने एक लेख - 'क्या बोटिक दिगम्बर हैं ?' - में बहुत ही स्पष्टतापूर्वक प्रतिपादित किया है । उनका यह लेख Aspects of Jainology Vol, II पं० बेचरदासदोशी स्मृतिग्रंथ में पार्श्वनाथ विद्याश्रम से ही प्रकाशित हुआ है । वे लिखते हैं“विशेषावश्यक की विस्तृत चर्चा में विवाद के विषय वस्त्र और पात्र हैं, इसमें मुक्ति निषेध की चर्चा नहीं है । दिगम्बर संप्रदाय में वस्त्र- पात्र के अलावा स्त्रीमुक्ति का भी निषेध है । अतएव जिनभद्र के समय में बोटिक को दिगम्बर संप्रदाय के अन्तर्गत नहीं किया जा सकता । मुद्रित आवश्यकचूर्णि में जितने अंश में बोटिक की चर्चा है, उसके मार्जिन में 'दिगम्बरोत्पत्ति' छपा है । किन्तु वह सम्पादक का भ्रम है । क्योंकि चूर्णि में भी बोटिक की चर्चा में कहीं भी स्त्रीमुक्ति की चर्चा को स्थान नहीं मिला है । अतएव बोटिक और दिगम्बर में भेद करना जरूरी है । यहाँ यह भी बता देना जरूरी है कि विशेषावश्यकभाष्य की गाथा २६०९ की १. आवश्यक नियुक्ति (हरिभद्रीय वृत्ति) में उपलब्ध मूलभाष्य गाथा पृ० २१५-१६ । २ स्त्रीग्रहणं तासामपि तद्भव इव संसारक्षयो भवति इति ज्ञापनार्थ वचः यथोक्तम् यापनीयतंत्र” —— श्रीललितविस्तरा पृ० ५७-५८, ऋषभदेव केशरी - मल श्वेताम्बर संस्था, रतलाम । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002068
Book TitleJain Dharma ka Yapniya Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1996
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Religion
File Size10 MB
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