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________________ २१६ : जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय अतः भवन और विमान वैकल्पिक स्वप्न माने गये हैं, इस प्रकार माता द्वारा देखे जाने वाले स्वप्न की संख्या तो १४ ही रहती है (आवश्यक हरिभद्रो वृत्ति पृ० १०८ ) । स्मरण रहे कि यापनीय रविषेण ने पउमचरियं के ध्वज के स्थान पर मीन-युगल को माना है। साथ ही सागर के बाद उन्होंने सिंहासन का उल्लेख किया है और विमान तथा भवन को अलगअलग स्वप्न माना है । यहाँ यह भी ज्ञातव्य है कि स्वप्न सम्बन्धी पउमचरियं की यह गाथा श्वेताम्बर मान्य 'नायधम्मकहा' से बिल्कुल समान है | अतः यह अवधारणा भो ग्रन्थ के श्वेताम्बर परम्परा से सम्बद्ध होने सम्बन्ध में प्रबल साक्ष्य है । ७ - पउमचरियं में भरत और सगर चक्रवर्ती को ६४ हजार रानियों का उल्लेख मिलता है, जब कि दिगम्बर परम्परा में चक्रवर्तियों की रानियों की संख्या ९६ हजार ही बतायी हैं । अतः यह साक्ष्य भी दिगम्बर और यापनीय परम्परा के विरूद्ध है और मात्र श्वेताम्बर परम्परा के पक्ष में जाता है । ८ - अजित और मुनिसुव्रत के वैराग्य के कारणों को तथा उनके संघस्थ साधुओं की संख्या को लेकर पउमचरियं और तिलोयपण्णत्ति में मत वैभिन्य है । किन्तु ऐसा मतवैभिन्य एक ही परम्परा में भो देखा जाता है अत: इसे ग्रन्थ के श्वेताम्बर होने का सबल साक्ष्य नहीं कहा जा सकता है । ९ - पउमचरियं और तिलोयपत्ति में बलदेवों के नाम एवं क्रम को लेकर मतभेद देखा जाता है जबकि पउमचरियं में दिये गये नाम एवं क्रम श्वेताम्बर परम्परा में यथावत् मिलते हैं ।" अतः इसे भी ग्रन्थ के श्वेताम्बर परम्परा से सम्बद्ध होने के पक्ष में एक साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है । यद्यपि यह स्मरण रखना होना कि पउमचरियं में भी राम को बलदेव भी जहा गया है । १०- पउमचरियं में १२ देवलोकों का उल्लेख है जो कि श्वेताम्बर १. णायधम्म हा ( मधुकर मुनि) प्रथम श्रुतस्कंध, अध्याय ८, २६ । २. पउमचरियं ४ / ५८; ५ / ९८ । ३. पद्मपुराण ( रविषेण ), ४ / ६६, २४७ । ४. देखें पउमचरियं २१ / २२; पउमचरियं, इण्ट्रोडक्सन पेज २२ फुटनोट - ३. तुलनीय -- तिलोयपण्णत्ती, ४/६०८ । ५. पउमचरियं, इण्ट्रोडक्सन, पेज २१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002068
Book TitleJain Dharma ka Yapniya Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1996
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Religion
File Size10 MB
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