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________________ २१२ : जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय श्वेताम्बर आगम उपासकदशा में समाधिमरण का उल्लेख शिक्षाव्रतों के रूप में नहीं हुआ है । जबकि दिगम्बर परम्परा के कुन्दकुन्द आदि कुछ आचार्य समाधिमरण को १२ वें शिक्षाव्रत के रूप में अंगीकृत करते हैं।' अतः पउमचरियं दिगम्बर परंपरा से सम्बद्ध होना चाहिये । इस सन्दर्भ में मेरी मान्यता यह है कि गुणवतों एवं शिक्षाव्रतों के नाम एवं उनके क्रम के सन्दर्भ में श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्पराओं में एकरूपता का अभाव पाया जाता है. दिगम्बर परम्परा में तत्त्वार्थ का अनुसरण करने वाले दिगम्बर आचार्य भी समाधिमरण को शिक्षाव्रतों में परिग्रहित नहीं करते हैं। जबकि कुन्दकुन्द ने उसे शिक्षाव्रतों में परिग्रहित किया है। जब दिगम्बर परम्परा ही इस प्रश्न पर एकमत नहीं है तो फिर इस आधार पर पउमचरियं की परम्परा का निर्धारण कैसे किया जा सकता है ? साम्प्रदायिक मान्यताओं के स्थिरीकरण के पूर्व निर्ग्रन्थ परम्परा में विभिन्न धारणाओं की उपस्थिति एक सामान्य बात है थी। अतः इस ग्रन्थ के सम्प्रदाय का निर्धारण करने में व्रतों के नाम एवं क्रम सम्बन्धी मतभेद सहायक नहीं हो सकते। ७-पउमचरियं में अनुदिक् का उल्लेख हुआ है । श्वेताम्बर आगमों में अनुदिक् का उल्लेख नहीं है, जबकि दिगम्बर ग्रन्थ (यापनीय ग्रन्थ) १. पंचेवणुव्वयाइं गुणव्वयाइं हवंति तह तिष्णि । सिक्खावय चत्तारि य संजमचरणं च सायारं ॥ थूले तसकायवहे थूले मोसे अदत्तथूले य । परिहारो परमहिला परिग्गहारंभ परिमाणं ॥ दिसविदिसमाणपढमं अणत्थदण्डस्स वज्जणं बिदियं । भोगोपभोगपरिमाण इयमेव मुणव्वया तिण्णि ॥ सामाइयं च पढमं बिदियं च तहेव पोसहं भणियं । तीइयं च अतिहिपुज्ज चउत्थ सल्लेहणा अंते ॥ -चारित्तपाइड २२-२६ ज्ञातव्य है कि जटासिंह नन्दी ने भी वराङ्गचरित सर्ग २२ में विमलसूरि का अनुसरण किया है। २. देखिए, जैन, बौद्ध तथा गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन (ले० डॉ० सागरमल जैन) भाग-२, पृ० सं० २७४ ३. पउमचरियं, १०२/१४५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002068
Book TitleJain Dharma ka Yapniya Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1996
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Religion
File Size10 MB
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