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________________ २०६ : जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय प्रभाचन्द्रकृत तत्त्वार्थसूत्र __आचार्य उमास्वाति के तत्त्वार्थसूत्र से तो हम सभी परिचित हैं किन्तु आचार्य प्रभाचन्द्र का एक अन्य तत्त्वार्थसूत्र भी है, इसे बहुत कम लोग जानते हैं। इसे प्रारम्भ में 'दस सूत्र'' और अन्त में 'जिनकल्पीसूत्रऐसा नाम दिया गया है, किन्तु प्रत्येक अध्याय की पुष्पिका में सामान्यतया बृहत्प्रभाचन्दकृत तत्वार्थसूत्र ऐसा नाम मिलता है। दसवें अध्याय के अन्त में तत्त्वार्थसारसूत्र ऐसा नाम-निर्देश भी हुआ। ग्रन्थ की विषयवस्तु का विभाजन और अध्याय का क्रम वही है जो तत्त्वार्थसूत्र का है। यह सुनिश्चित है कि इसकी रचना तत्त्वार्थसूत्र के आधार पर हुई है कुछ सूत्रों की तो तत्त्वार्थसूत्र से समरूपता भी है। इसका एक नाम तत्त्वार्थसारसूत्र है जो अधिक सार्थक जान पड़ता है, क्योंकि तत्त्वार्थसूत्र की विषयवस्तु को हो इसमें अति संक्षेप में निरूपित करने का प्रयत्न किया गया है। तत्त्वार्थ की अपेक्षा इसकी सूत्र-संख्या बहुत ही कम है, इसमें मात्र १०७ सूत्र हैं जबकि तत्त्वार्थसूत्र के दिगम्बर परम्परा द्वारा मान्य पाठ में ३५७ सूत्र और श्वेताम्बर मान्य पाठ में ३४४ सूत्र हैं । दससत्र-यह नाम इसके दस अध्ययनों के आधार पर दिया गया प्रतीत होता है। दिगम्बर परम्परा में उमास्वाति के तत्त्वार्थसूत्र को भी दससूत्र कहा जाता है। इसका अन्तिम नाम जिनकल्पीसूत्र विशेष महत्त्वपूर्ण है । ऐसा स्वयं जुगल किशोर जी मुख्तार ने इसकी भूमिका में माना है। मेरी दृष्टि में भी यह नाम इसके सम्प्रदाय के निर्धारण में बहुत उपयोगी है। इसके रचयिता प्रभाचन्द्र हैं, किन्तु उनके नाम के साथ बृहत् विशेषण लगा हुआ है। यह विचारणीय है कि ये प्रभाचन्द्र कौन हैं, कब हुए और किस परम्परा के हैं ? यहाँ बृहत् शब्द का अर्थ बड़ा, प्राचीन या पूर्ववर्ती ही अभिप्रेत है। अब यह प्रमाणित हो चुका है कि प्रमेयकमल-मार्तण्ड और न्यायकुमुदचन्द्र के कर्ता प्रभाचन्द्र (लगभग १०२० ई०) के पूर्व १. "ॐ नमः सिद्धं । अथ दशसूत्रं लिख्यते"-तत्त्वार्थसूत्र, सम्पादक जुगल किशोर मुख्तार, प्रकाशन वीर सेवा मन्दिर, सहारनपुर, पृ० १२ । २. "इति जिनकल्पिसूत्रं समाप्तम्'-वही, पृ० १६ । . ३. "इति श्री बृहत्प्रभाचन्द्रविरचिते तत्त्वार्थसूत्रे प्रथमोध्यायः"-वही, पृ० २३ । ४. "इति श्री बृहत्प्रभाचन्द्रविरचिते तत्त्वार्थसारे सूत्रे दशमोध्यायः''-वही, पृ० ५२। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002068
Book TitleJain Dharma ka Yapniya Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1996
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Religion
File Size10 MB
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