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________________ १७२ : जैनधर्म का यापनीय गम्प्रदाय उपरोक्त चार विकल्पों में से दिगम्बर परंपरा में मात्र चतुर्थ विकल्प ही प्रचलित एवं मान्य रहा। क्योंकि पात्र आदि नहीं रखने से वे इस प्रकार सेवा करने में समर्थ नहीं होते हैं। इसके विपरीत श्वेताम्बर परंपरा में पात्रादि का अपरिहार्य ग्रहण होने से प्रथम विकल्प प्रचलित रहा है और चतुर्थ विकल्प को जिन-कल्प कहा गया। किन्तु यापनीय परंपरा में उत्सर्ग मात्र में चतुर्थ और अपवाद मार्ग में प्रथम, द्वितीय और तृतीय विकल्प भी मान्य रहे हैं। उसके ग्रन्थ भगवती आराधना आदि में रुग्ण एवं ग्लान साधु को आहार-पानक लाकर देने और इस प्रकार उनकी सेवा करने का उल्लेख है। भगवती-आराधना में कहा गया है कि चार मुनि क्षपक के लिये आहार लाते हैं और चार मुनि पानी। अन्य चार उस लाये हुए आहार को रक्षा करते हैं।' श्वेतांबर परंपरा में ग्लान एवं रोगी मुनि को आहार-औषधि आदि से सेवा करने सम्बन्धी यह आदर्श नन्दीषेण मनि के कथानक में पर्याप्त रूप से विकसित हुआ है। ___ श्वेताम्बर साहित्य में नन्दीसेन का यह कथानक आवश्यकचूणि,२ दशवैकालिक चूर्णि , जीतकल्पभाष्य, स्थानांग अभयदेव वृत्ति में उल्लेखित है। यही नन्दीषण का कथानक भगवती आराधना के अतिरिक्त जिनसेन एवं हरिषेण के हरिवंश पुराण में भी वर्णित है। जिसमें कहा गया है कि नन्दीषण मुनि अपनी लब्धि (सिद्धि) के बल पर रोगी मुनि के हाथों में अपेक्षित आहार-औषधि आदि प्रकट कर देते हैं। यापनीय परंपरा में पाणीतल भोजन की परंपरा रही है, अतः उसी के अनुसार यहाँ लाकर देने के स्थान पर सम्भवतः हाथों में प्रकट कर देने की बात कही गयी हो। 'किन्तु इसी कथा में आगे चलकर नन्दिषेण मुनि द्वारा स्वयं गोचरी बेला में जाकर रोगी को अपेक्षित पथ्य-आहार लाकर देने का भी स्पष्ट उल्लेख -६६२, ६६३ १. भगवती आराधना, गाथा ६६१ । २. आवश्यकणि भाग २, पृ० ९४ । ३. दशवकालिकचूर्णि, पृ० ५९ । ४. जीतकल्पभाष्य, गाथा ८२५-८४६ । ५. स्थानांग अभयदेव वृत्ति, पृ० ४७४ ।। ६. हरिवंशपुराण-~सर्ग १८।१२६-१६६ । ७. हस्ते भेषजधाशु जायते ।-वही १८११३८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002068
Book TitleJain Dharma ka Yapniya Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1996
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Religion
File Size10 MB
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