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यापनीय साहित्य : १६९ किन्तु अन्यत्र यह भी कहा गया है कि भक्ति तत्पर व्यक्तियों को कर्मक्षय के निमित्त समस्त संघ को वस्त्रादि का दान देना चाहिये । (५७।५५४) संघ को वस्त्रदान का गौरवगान करने वाली परम्परा किसी भी स्थिति में दिगम्बर नहीं हो सकती है ।
(८) आराधना कथाकोश ( बृहत्कथाकोश ) में अन्निकापुत्र, मेतार्य आदि कुछ कथायें दिगम्बर परम्परा में अप्रचलित रही हैं, यापनीय ग्रन्थों के अतिरिक्त किसी भी दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थ में ये कथायें नहीं पायी जाती हैं। जबकि श्वेताम्बर और यापनीय परम्परा में आवश्यक नियुक्ति आदि में ये कथायें पायी जाती है । इसलिए भी आराधना कथाकोश और उसके कर्ता हरिषेण यापनीय प्रतीत होते हैं। बृहत्कथाकोश के यापनीयत्व में बाधकतय्य और उनके प्रामाण्य का प्रश्न
डा० श्रीमती कुसुम पटोरिया के अनुसार बृहत्कथाकोश का भद्रबाहु कथानक इस ग्रन्थ को यापनीय मानने में बाधक प्रतीत होता है । अतः इस सम्बन्ध में गम्भीर पुनर्विचार की आवश्यकता है क्योंकि इसमें अर्धस्फालक सम्प्रदाय से श्वेताम्बर और उससे यापनीय संघ की उत्पत्ति बतायी गयी है। किन्तु इस कथानक का भी दिगम्बर परम्परा से तीन बातों में विरोध आता है। प्रथम तो यह कि भद्रबाह मुनि दक्षिण नहीं गये, जबकि दिगम्बर परम्परा में उनका दक्षिण जाना सुनिश्चित है। पुनः दिगम्बर परम्परा में स्थूलिभद्र, रामिल्ल और भद्राचार्य नामक आचार्यों का कोई उल्लेख नहीं है, जबकि इस कथानक में उनका उल्लेख है और उनके द्वारा पुनः अचेलकत्व के ग्रहण का भी निर्देश है। इसमें चन्द्रगुप्त मुनि
१. ततः समस्तसंघस्य देहिभिर्भ क्तितत्परैः ।
देयं वस्त्रादिदानं च कर्मक्षयनिमित्ततः । बृहत्कथाकोश ५७१५५४ ।। २. देखें (अ)-बृहत्कथाकोश-कथा क्रमांक १३० एवं १०५
(ब) (i) अण्णियापुत्त, आवश्यक नियुक्ति ११९०-९१ (ii) मेतेज्ज
वही ८८६-८७० ३. देखें-प्राप्य भाद्रपदं देशं श्रीमदुज्जयिनीभवम् ।
चकारानशनं धीरः स दिनानि बहून्यलम् ॥ १३१/४३ ॥ ४. रामिल्लः स्थविरः स्थूलभद्राचार्यस्त्रयोऽप्यमी ।
महावैराग्यसंपन्ना विशाखाचार्य माययुः ॥ १३१/६५ ॥
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