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यापनीय साहित्य : १६३ है कि यह ग्रन्थ यापनीय परम्परा से सम्बद्ध रहा है क्योंकि यापनीयों में श्वेताम्बर मान्य आगमों के अध्ययन और उन्हें मान्य करने की प्रवृत्ति रही है।
(५) इस प्रतिक्रमण सूत्र में तेवोसाए सद्दयडज्झाणेसु कह कर सूत्रकृतांग के तेवीस अध्ययनों का उल्लेख तीन गाथाओं में हुआ है । यहाँ भी लिपि - दोष के कारण कुछ अध्यायों के नामों में परिवर्तन हुआ है, किन्तु अधिकांश नाम वही है जो वर्तमान में सूत्रकृतांग में उपलब्ध होते हैं तुलना के लिए दोनों के मूल पाठ नीचे दिये जा रहे हैं प्रतिक्रमण ग्रन्थत्रयी में सूत्रकृतांग के अध्यायों की नाम सूचक गाथायें निम्न हैं
समए वेदालिझे एत्तो उवसग्ग इत्थिपरिणामे । णिरयंतरवीरथदी कुसीलपरिभासिए विरिए ॥१॥ धम्मो य अग्गमग्गे समोवसरणं तिकालगंथहिदे । आदा तदित्थगाथा पुंडरिको किरियठाणे य ॥२॥ आहारयपरिणामे पच्चक्खाणाणगारगुणकित्ति । सुद अत्था णालंदे सुद्दयडज्झाणाणि तेवीसं ॥ ३ ॥ समवायांग में उल्लेखित सूत्रकृतांग के अध्यायों की नाम सूची इस प्रकार है
तेवीसं सूयगडज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा - समए १. वेतालिए २. उवसग्गपरिण्णा ३. थीपरिण्णा ४. नरयविभत्ती ५. महावीरथुई ६. कुसीलपरिभासिए ७. विरिए ८. धम्मे ९ समाही १०. मग्गे ११. समोसरणे १२. आहतहिए १३. गंथे १४. जमईए १५. गाथा १६. पुंडरीए २७. किरियाठाणा १८. आहारपरिण्णा १९. अपच्चक्खाणकिरिआ २०. अणगारसुर्य २१. अद्दइज्जं २२. नालंदइज्जं २३ ।
[ सूत्रकृताङ्ग के तेईस अध्ययन कहे गये हैं- जैसे – १. समय, २. वैतालिक, ३. उपसर्गपरिज्ञा, ४. स्त्रीपरिज्ञा, ५. नरकविभक्ति, ६. महावीरस्तुति, ७. कुशीलपरिभाषित, ८. वीर्य, ९. धर्म, १०. समाधि, ११. मार्ग, १२. समवसरण, १३. याथातथ्य ( आख्यातहित ) १४. ग्रन्थ, १२. यमतीत, १६. गाथा, १७. पुण्डरीक, १८. क्रियास्थान, १९. आहारपरिज्ञा, २०. अप्रत्याख्यानक्रिया, २१. अनगारश्रुत, २२. आद्रय, २३ नालन्दीय ]
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