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________________ अध्याय-१ विषय-प्रवेश सामान्यतया आज विद्वत्वर्ग और जन-साधारण जैनधर्म के दो प्रमुख सम्प्रदायों-श्वेताम्बर और दिगम्बर से ही परिचित हैं, किन्तु उसका 'यापनीय' नामक एक अन्य महत्त्वपूर्ण सम्प्रदाय भी था, जो ई० सन् की दूसरी शती से पन्द्रहवीं शताब्दी तक लगभग १४०० वर्ष जीवित रहा और जिसने न केवल अनेकों जिन-मन्दिर बनवाये एवं मूर्तियाँ स्थापित की, अपितु जैन-साहित्य के क्षेत्र में और विशेषकर जैन शौरसेनी प्राकृत साहित्य के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण अवदान भी प्रदान किया। यह सम्प्रदाय आज से ५० वर्ष पूर्व तक जैन समाज के लिए भी पूर्णतः अज्ञात बना हुआ था। संयोग से विगत ५० वर्षों की शोधात्मक प्रवृत्तियों के कारण इस सम्प्रदाय के कुछ अभिलेख एवं ग्रन्थ प्रकाश में आये हैं। फिर भी अभी तक इस सम्प्रदाय पर चार-पाँच लेखों के अतिरिक्त कोई भी विशेष सामग्रो प्रकाशित नहीं हुई है। सर्वप्रथम प्रो० ए० एन० उपाध्ये एवं पं० नाथूराम जी प्रेमी ने ही इस सम्बन्ध में कुछ लेख प्रकाशित किये थे, किन्तु उनके पश्चात् इस दिशा में पुनः उदासीनता आ गई थी। प्रस्तुत 1. a- Indian Antiquary VII pp. 34 b- H. Luders : E. IV, P 238 c-नाथूराम प्रेमी : जैन हितैषी, XIII पृ० २५०-७५ d-A. N. Upadhye : Journal of the University of Bombay, 1956, I-VI pp 224 ff; e-नाथूराम प्रेमी : जैन साहित्य और इतिहास-द्वितीय संस्करण (बम्बई १९५६) पृ० ५६, १५५, ५२१ f-P. B. Desai : Jainism in South India, pp. 163-66 आदि । g-ए० एन० उपाध्ये : जैन सम्प्रदाय के यापनीय संघ पर कुछ और प्रकाश, अनेकान्त, वर्ष २८, किरण १, पृ० २४४-२५३ ।। २. डॉ० कुसुम पटोरिया का 'यापनीय और उनका साहित्य' नामक ग्रन्थ सद्यः ही प्रकाशित हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002068
Book TitleJain Dharma ka Yapniya Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1996
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Religion
File Size10 MB
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