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________________ यापनीय साहित्य : १४५ लगता है कि ग्रन्थ यापनीय परम्परा का होना चाहिए और इस ग्रन्थ के कर्ता यदि इन्द्रनन्दी ही हैं तो वे यापनीय नन्दीसंघ के कोई इन्द्रनन्दी रहे होंगे । श्रीमती (डॉ०) कुसुम पटोरिया ने जटासिंह नन्दी के वरांगचरित्र के यापनीय कृति होने की सम्भावना की चर्चा करते हुए कन्नड़ कवि जन्न (ई० १२१९) के अनन्तनाथ पुराण का एक श्लोक उद्धृत किया है-वंद्यर जटासिंह गंद्याचार्यादींद्रंणद्याचार्यादि मुनि कार्ग पंद्यपृथिवियोलगेल्लं (१/१७) । इसमें जटासिह नन्दी और इन्द्रनन्दी को काणूरगण का बताया गया है और यह काणूरगण यापनीय संघ का है यह हम द्वितीय अध्याय में बता चुके हैं। अतः छेदशास्त्र के प्रणेता इन्द्रनन्दी यापनीय संघ के काणूर गण के हैं और ये लगभग ईसा की ७-८वीं शताब्दी में हुए हैं । सम्भवतः ये जटासिंह नन्दी के शिष्य रहे हों । इतना निश्चित है कि ये श्रुतावतार के कर्ता इन्द्रनन्दी के भी पूर्व हुए हैं। इन्द्र (नन्दी) का उल्लेख हमें रविषेण के पद्मचरित और गोम्मटसार में भी मिलता है। रविषेण ने पद्मचरित में अपनी गुरु परम्परा में इन्द्र, दिवाकर यति, अर्हन्मनि और लक्ष्मणसेन के नामों का उल्लेख किया है ।२ श्रीमती (डॉ.) कुसुम पटोरिया लिखती हैं कि आचार्य रविषेण कई कारणों से यापनीय प्रतीत होते हैं। यदि रविषेण यापनीय हैं तो गुरु के प्रगुरु भी यापनीय होंगे, इसमें संदेह नहीं किया जा सकता है। रविषेण के पद्मचरित के लेखन का समय ईस्वी सन् ६७८ है । अतः उनके प्रगुरु के गुरु कम से कम उनसे एक सौ वर्ष पूर्व अर्थात् ईस्वी सन् ५७८ के पूर्व ही हुए होंगे। पुनः गोम्मटसार में 'इन्द्र' का उल्लेख सांशयिक के रूप में हुआ है। गोम्मटसार के टीकाकार ने उन्हें श्वेताम्बर कहा है।५ किन्तु वास्तविकता तो यह है कि ये इन्द्र (नन्दी) यापनीय हैं । क्योंकि दिगम्बरों की दृष्टि में यापनीय ही सांशयिक हो सकते हैं। पं० नाथूरामजी प्रेमो' लिखते हैं कि "शाकटायन सूत्रपाठ में इन्द्र, सिद्धनन्दि और आर्यवज्रइन तीन का मत दिया है-सम्भवतः ये भी यापनीय सम्प्रदाय के होंगे। इन्द्र को गोम्मटसार के टीकाकार ने श्वेताम्बर गुरु बतलाया है। १. यापनीय सम्प्रदाय और साहित्य, पृ० १५८ । २. पाचरितम् (रविषण), भूमिका पृ० २। ३. यापनीय सम्प्रदाय और साहित्य, पृ० १४६ । ४. गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा १६ । ५. वही (टीका)। ६. जैन साहित्य और इतिहास (१० नाथूराम जी प्रेमी) पृ० १६७ । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002068
Book TitleJain Dharma ka Yapniya Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1996
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Religion
File Size10 MB
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