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________________ १२८ : जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय भोजन के कष्ट से बिना संक्लेश बुद्धि के भद्रबाहु मुनि उत्तम स्थान को प्राप्त हुए। परन्तु दिगम्बर सम्प्रदाय की किसी भी कथा में भद्रबाहु का इस ऊनोदर-कष्ट से समाधिमरण का उल्लेख नहीं है। १३. नं० ४२८ की गाथा' में आधारवत्व गुण के धारक आचार्य को 'कप्पवबहारधारी' विशेषण दिया है और कल्प-व्यवहार, निशीथसूत्र, श्वेताम्बर सम्प्रदाय में प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं । इसी तरह ४०७ नम्बर की गाथा में निर्यापक गुरु की खोज के लिए परसंघ में जाने वाले मुनि की 'आयारजीद-कप्पगुणदीवणा' होती है। विजयोदया टीका में इस पद का अर्थ किया है, 'आचारस्य जीतसंज्ञितस्य कल्पस्य गुणप्रकाशना।' और आशाधर की टीका में लिखा है, 'आचारस्य जीदस्य कल्पस्य च गुणप्रकाशना । एतानि हि शास्त्राणि रत्नत्रयतामेव दर्शयन्ति ।' पं० जिनदास शास्त्री ने हिन्दी अर्थ में लिखा है कि आचारशास्त्र, जीतशास्त्र और कल्पशास्त्र इनके गुणों का प्रकाशन होता है।' अर्थात् तीनों के मत से इन नामों के शास्त्र हैं और यह कहने की जरूरत नहीं कि आचारांग और जीतकल्प श्वेताम्बर सम्प्रदाय में हैं। १. ओमोदरिए घोराए भद्दबाहू असंकिलिट्ठमदी । घोराए तिगिंछाए पडि वण्णो उत्तमं ठाणं ॥१५४४ २. चोदस-दस-णव-पुल्वी मतामदी सायरोव्व गंभीरो । कप्पवहारघारी होदि हु आधारवं णाम ।। आयारजीदकप्पगुणदीवणा अत्तसोधिनिज्झंझा। अज्जव-मद्दव-लाघव-तुट्ठी पल्हादणं च गुणा ॥ यही गाथा जरासे पाठान्तर के साथ १३० ३ नम्बर पर भी है। उसमें 'तुट्ठी पल्हादणं च गुणा' की जगह 'भत्ती पल्हादकरणं च' पाठ है । १३० वीं गाथा (पृ० ३०४) में भी 'आयारजीदकप्पगुणदीवणा' पद है। इसका अर्थ विजयोदया में किया है-"प्रथममंगमाचारशब्देनोच्यते । आचारशास्त्रनिर्दिष्टक्रमः आचारजीदशब्देन उच्यते । कल्प्यते अभिधीयते येन अपराघानुपरो दण्डः संकल्पस्तस्य गुणः उपकारस्तेन निर्वय॑त्वात् । अनयोः प्रकाशनं आयारजीदकप्पगुणदीवणा।" ५९वीं गाथा (पृ० ७९७) मेंणवमम्मिय जं पुग्वे भणिदे कप्पे तहेव ववहारो। अंगेसु सेसएसु च पइण्णए चावि तं दिण्णं । ६२२वीं गाथा (पृ० ८२४ ) में 'छेदसुदजाणगगणी से छेदसूत्रज्ञः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002068
Book TitleJain Dharma ka Yapniya Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1996
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Religion
File Size10 MB
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